क़ब्रगाह की प्रेमिकाएँ

qabrgah ki premikayen

चंद्रबिंद

चंद्रबिंद

क़ब्रगाह की प्रेमिकाएँ

चंद्रबिंद

वर्षों पहले

जो घूमा करते थे

अपने हाथों में लिए गुलाब

मुझे देखना है

आज उन्हें

फिर वैसे ही

अपनी प्रेमिकाओं का

इंतज़ार करते हुए

किसी झील के किनारे

वह जोड़ी

जो उस दिन चली गई थी

जंगल में

बहुत दूर तक

कितना लौट पाए थे?

क्या उतना ही लौटे थे

जितना वे जाते समय थे

उनका प्यार

कितना संदिग्ध हो गया था

जब वे करने लगे थे प्रेम

उन लड़कियों से

जो उन्हें नापसंद थीं

हालाँकि, उन लड़कियों में

वैसा कुछ भी नहीं था,

जो उन्हें

संदिग्ध बनाता हो

सिवाय इसके कि

वे जानती थीं

अपना जीवन अपने तरीक़े से जीना

उन प्रेमिकाओं का प्रेम

कितना अकेला होगा

जिनके जीवन में अब वसंत

निबंध का एक विषय

और होली

बच्चों का त्योहार भर है

और जो अपने जीवन के ऋतु काल में

एसिडिटी से इसलिए लड़ती रहीं

कि वे जो करना चाहती थीं,

उन्हें करने नहीं दिया गया

और जिनकी इच्छाओं को

एक मनोचिकित्सक

वर्षों तक

नींद की गोलियों से

इसलिए कुचलता रहा,

ताकि संक्रमण से बचा जा सके

मुझमें कितनी बची हैं

वे लड़कियाँ,

जो प्रेम में अक्सर झूठ बोलती थीं

और यह जानते हुए भी कि

वे झूठ बोल रही हैं

मैं उन पर

विश्वास किया करता था

आज जबकि बाज़ार

अपनी संपूर्ण नग्नता से

हर रिश्ते को रोकड़े में बदल देना चाहता है

ऐसे में

क्या उन सब में

प्यार अब भी बचा है

उस अवशेष की तरह

जो वर्षों बाद भी

झाँकता रहता है

जंगली झाड़ियों के बीच

उनके लिए बनाई गई क़ब्रगाह से,

जिसके थरथराते होंठों को छूकर

हँस उठते थे

पृथ्वी, पर्वत और झरने

वसंत बनकर

स्रोत :
  • रचनाकार : चंद्रबिंद
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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