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प्यार के घायल पुनर्जन्म पर

pyar ke ghayal punarjanm par

कैलाश वाजपेयी

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कैलाश वाजपेयी

प्यार के घायल पुनर्जन्म पर

कैलाश वाजपेयी

और अधिककैलाश वाजपेयी

    बेहोश वर्षों के पीले समुद्र में

    एक सुबह डूब कर

    किसी दूर द्वीप के भोले किनारे

    तुम मुझे अकस्मात् फिर मिल जाओगे,

    मेरे घुले संगमरमर से प्यार

    मैंने यह कभी नहीं सोचा था—

    जलती चट्टान के टूटे वक्षस्थल पर

    ग़लती से लहर संग कर

    फिर पछाड़ खाओगे—

    मेरे अनबदले प्यार

    मैंने यह कभी नहीं सोचा था।

    माथे पर वैसा ही काला गुलाब और

    बातों में वैसी ही बाँसुरी

    आँखों में वैसी खुली बंद सीपियाँ

    होंठों पर नन्ही-सी पाँखुरी

    अंगों में वैसा ही तार कसा वायलिन

    साँसों में वैसा ही बचपना

    वैसी ही चीख़ ठीक

    वैसी ही किलकारी

    पैरों में उसी तरह

    दौड़ती गिलहरी

    सब कुछ है वही वही

    सिर्फ़ एक मैं नहीं—

    वह बिगड़ा नाम क्या फिर से दोहराओगे?

    मेरे प्यार नहीं—

    तुम्हीं ऊब जाओगे।

    कह दूँ वह सब जो है अनकहा

    सुनो मीत अब मैं कहाँ रहा

    अब मैं चलता नहीं

    केवल घिसटता हूँ—

    अभिचारी मुट्ठी में बंद दबे सिक्के-सा

    एक, कभी दो, कभी कई-कई दिखता हूँ

    नहीं मेरे रक्त में उफान अब

    नहीं मेरे मन में उत्तेजना

    ना मेरी आँखों में उगते हैं सूर्य और

    नहीं मेरे होंठों में

    प्यास का उलाहना

    अब मेरी साँसें ज्वरग्रस्त हैं

    अब मेरी आयु सन्निपात है

    अशुभ है मेरा स्पर्श अब

    अनिश्चय ही मेरा इतिहास है।

    मेरे प्यार मैं तुम्हारे अयोग्य हूँ

    लज्जित हूँ

    तुम यहाँ ठहर नहीं पाओगे।

    स्रोत :
    • पुस्तक : संक्रांत (पृष्ठ 104)
    • रचनाकार : कैलाश वाजपेयी
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
    • संस्करण : 2003

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