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लीला

lila

दर्शन बुट्टर

अन्य

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और अधिकदर्शन बुट्टर

    तुम अपने जन्मदिन पर

    वर्ष की

    एक और मोमबत्ती जलाओगे

    मैं अपनी सालगिरह पर

    उम्र का

    एक और दीया बुझा देता हूँ

    ऐसा करते

    तूने इतनी मोमबत्तियाँ जलाईं

    जितने हैं

    तुम्हारी पूरी आयु के वर्ष

    ऐसा करते

    मैंने इतने दीए बुझाए

    जितने कि

    मेरी उम्र के साल

    इस जलने-बुझने की लीला में

    कभी हमारे चेहरे

    लौ के साथ सुर्ख़ हो जाते

    कभी स्याह कालिख की भीड़ में

    खो जाते रहे

    कभी हम बीती तस्वीरें

    पलकों पर लटकाकर बेबाक घूमते

    कभी

    हवा के मामूली झोंके से

    सिमटकर रह जाते

    लेकिन अब जो एकाध मोमबत्ती

    तुम नहीं जला पाई, बाक़ी है

    एकाध दीया

    रह गया है अनबुझा मेरे पास

    आओ, उनकी हाज़िरी में

    अंतिम बार देख लें, एक-दूसरे को

    और रख दें, उल्टे हाथ

    टिमटिमाती ज्योति पर

    मरने से पूर्व

    मृत्यु जैसा

    कोई वृहताकार, सत्य कहकर

    निश्चित हो जाएँ

    छोटे-छोटे झूठ से

    बीती यात्रा को

    नज़रों में भरकर विलीन हो जाएँ

    अपनी-अपनी ख़ाक में

    किसी आगामी यात्रा की निरंतरता के लिए।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 612)
    • संपादक : सुतिंदर सिंह नूर
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक फूलचंद मानव, योगेश्वर कौर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2014

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