प्रेम का अपवर्तनांक

prem ka apwartnank

मुकेश कुमार सिन्हा

मुकेश कुमार सिन्हा

प्रेम का अपवर्तनांक

मुकेश कुमार सिन्हा

नज़रें सीधी रेखा में कर रही थी गमन

कुछ ऐसा जैसे घोड़े की नज़रों को रखा जाता हो सामने

ज़िंदगी चल रही थी समानांतर

विज्ञान की शिक्षिका ने बताया

पारदर्शी माध्यम में प्रकाश का गमन

होता है सीधी रेखा में

फिर गणित के छात्र को रसायन विज्ञान की छात्रा में दिखा आकर्षण

शिक्षिका ने कहा इस बार

माध्यम के बदलते ही

प्रकाश की किरणें झुकती हैं अभिलंब की ओर

रास्ते बदलने लगे, कक्षा की सीट भी

जब प्रकाश अपने पथ से विचलित हो सकता है

तो प्रेमी क्यों नहीं

आपतित किरण, अपवर्तित किरण और अभिलंब

सभी होते हैं एक तल में

वैज्ञानिक सूत्र की व्याख्या

की जा रही थी ब्लैक बोर्ड पर

कि थम गई नज़र दरवाज़े पर

वो बस आई ही तो थी...

विज्ञान का दिल धड़कता ही नहीं धधकता भी है

महाविद्यालय परिसर का अपवर्तनांक

रहा नियत

प्रेम धड़कता रहा

क्लासेज चलती रहीं

बरगद के पेड़ ने सहेजे ब्लेड से बने दिल के निशान

एक सुबह आई ख़बर

कल है उसका ब्याह!

चन्द्रयान की तरह

प्रेम यान की लैंडिंग भी अंतिम पलों में लड़खड़ाई

छात्र ने अंतिम पन्ने में शुभ विदा लिखा

विज्ञान की शिक्षिका ने त्यागपत्र दिया!

स्रोत :
  • रचनाकार : मुकेश कुमार सिन्हा
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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