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प्राक्कथन

prakkthan

कुमार मंगलम

अन्य

अन्य

कुमार मंगलम

प्राक्कथन

कुमार मंगलम

और अधिककुमार मंगलम

    जब तक मैं अपना मिज़ाज बनाऊँ

    और शुरू करूँ एक कविता

    इसे कविता की तरह नहीं सुना जाए

    बल्कि इसे आप शोकगीत की तरह बरतें

    यह कोई भूमिका नहीं

    जिसे कविता पढ़ने से पहले कहा जाए

    दरअस्ल,

    यह रुदनगीत है

    मैं आपसे नहीं कहूँगा कि

    आप खड़े हो जाइए

    और अब शुरू होता है

    दो मिनट का मौन

    आप मौन तो बिल्कुल हों

    आप इतना तो ज़रूर चिल्लाएँ

    कि आपके कान के पर्दे ही फट जाएँ

    क्योंकि आप गूँगे हों हों

    आपको बहरा तो ज़रूर होना है

    यह जो जगह है

    वह निरंतर तब्दील होता वधस्थल है

    छिन चुकी हैं आपसे आपकी भाषाएँ

    बोलियाँ तो कब की मर चुकी हैं

    आप ऐसे विक्रम हैं

    जिसके कंधे पर नहीं

    बैठा है कोई बैताल

    यह आप ही हैं

    जो ख़ुद बैठे हैं अपने कंधे पर

    स्रोत :
    • पुस्तक : पूर्वग्रह 166-67 (पृष्ठ 220)
    • संपादक : प्रेमशंकर शुक्ल
    • रचनाकार : कुमार मंगलम

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