वो स्साला बिहारी

wo ssala bihari

अरुणाभ सौरभ

अरुणाभ सौरभ

वो स्साला बिहारी

अरुणाभ सौरभ

अबे तेरी…

और कॉलर पकड़

तीन-चार

जड़ दिए जाते हैं

मुँह पर

इतने से नहीं तो

बिहारी मादर…

चोर, चीलड़, पॉकेटमार

भौंसड़ी के…

सुबह हो गई

चाय ला

तेरी भैण की

झाड़ू-पोंछा

तेरी माँ लगाएगी?

जब भी मैं

अपने लोगों के बीच से

गुज़रता हूँ

रोज़ाना सुनने को मिलती हैं

कानों को हिला देने वाली गालियाँ

उनके लिए जो

हर ट्रेन के

जनरल डब्बे में

हुजूम बनाकर चढ़े थे

भागलपुर, मुज़फ़्फ़रपुर,

दरभंगा, सहरसा, कटिहार से

सभी स्टेशनों पर

दिल्ली, मुंबई, सूरत, अमृतसर, कोलकाता, गुवाहाटी

जाने वाली सभी ट्रेनों में

अपना गाँव, अपना देस छोड़कर

निकला था वो

मैले-कुचैले एयरबैग लेकर

दो वक़्त की रोटी पर

एक चुटकी नमक

दो बूँद सरसों तेल

आधा प्याज के ख़ातिर

जो गाँव में मिला नहीं

कटिहार से पटना तक

नहीं मिला

और जब निकल गया वहाँ से, तो

शौचालय के गेट पर

गमछा बिछाकर बैठ गया

और गंतव्य तक

पहुँचने के बाद

भूल गया कि

वो कहाँ है, कहाँ का है

सीखनी शुरू कर दी

हर शहर की भाषा

पर स्साला बिहारी

मुँह खोलते ही

लोगों को पता लग जाता है

देश के सभी बड़े शहरों में

वो झाड़ू लगता रहा

बरतन माँजता रहा

रिक्शा खींचता रहा

ठेला चलाता रहा

संडास को हटाता रहा

मैला ढोता रहा

हर ग़म को

चिलम की सोंट पर

और खैनी के ताव पर

भूलकर, वह

बीड़ी पर बीड़ी जलाता रहा

गाँव पहुँचने पर भी

अभ्यास किया

तेरे को, मेरे को…

पर हर जगह जो मिला

सहर्ष स्वीकार किया

झाडू, कंटर, बरतन

रिक्शा, ठेला और गालियाँ

और लात-घूसे

और उतने पैसे, कि

वो, उसका परिवार

और उसकी बीड़ी, खैनी

चलते रहे

अपने टपकते पसीने में सीमेंट-बालू सानकर

उसने कलकत्ता बनाया था

अपने ख़ून में चारकोल सानकर

उसने बनाए थे दिल्ली तक जाने वाले सारे

राष्ट्रीय राजमार्ग

वज्र जैसी हड्डियों की ताकत से

उसने खड़ी की थीं

बंबई की सारी इमारतें

फेफड़े में घुसे जा रहे रूई के रेशे से

खाँसते-खाँसते दम ले-लेकर

उसने खड़ा किया था सूरत

कितनी रातों भूख से जाग-जाग

रैनबसेरा पर उसने सपने देखे थे

लुधियाना, चंडीगढ़, हिसार से लेकर

जमशेदपुर, राँची, बिलासपुर, दुर्गापुर, राउरकेला

और रुड़की, बंगलुरु तक को

सँवारने, निखारने के

अपनी आह के दम पर

उसने कितने

मद्रास को चेन्नई

बंबई को मुंबई

होते देखा था

उसे पता था कि

उसके बिना जाम हो जाती हैं

हैदराबाद से लेकर शिलॉन्ग तक की सारी नालियाँ

कितने पंजाब, कितने हरियाणा और

मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ की ख़रीफ़ से लेकर रबी फ़सलें

उसी के हाथों काटी जाएँगी

फ़ायदा चाहे जिसका भी हो

धूप ने

उसकी चमड़ी पर आकर

कविता लिखी थी

पसीने ने उसकी गंदी क़मीज़ पर

अल्पना बनाई थी

रंगोली सजाई थी

कुदाल ने उसकी क़िस्मत पर

अभी-अभी सितारे जड़े थे

रिक्शे ने अरमान जगाया था

कि अचानक उसकी बीवी चूड़ी तोड़ देती है

सिंदूर पोंछ लेती है

कि ठेला पकड़े हुए हाथ

अभी भी ठेला पकड़े हुए हैं

और गर्दन पर

ख़ून का थक्का जम गया है

वो स्साला बिहारी

कट गया है, गाजर मूली की तरह सामूहिक

बंबई या गुवाहाटी में

और बीवियाँ चूड़ी तोड़ रही हैं

लेकिन साला जब तक ज़िदा रहा

जानता था कि

इस देश के

हिंदू समाज के लिए

जितना संदेहास्पद है

मुसलमान का होना

उससे ज़्यादा अभिशाप है

भारत में बिहारी

साला यह भी जानता था कि

बिहारी होना मतलब दिन-रात

खटते मजूरी करना है जी-जान से

उसे मालूम था कि कहीं

पकड़ा जाए झूठ-मूठ चोरी-चपारी के आरोप में तो

नहीं बचाएँगे उसे जिला-जवार के अफ़सर

बिहारी का मतलब वो जानता था कि

अफ़सर, मंत्री, महाजन होना नहीं है

बिहारी का मतलब

फावड़ा चलाना है

पत्थर तोड़ना है

गटर साफ़ करना है

दरबानी करना है

चौकीदारी करना है

आवाज़ में निरंतरता है—

ओय बिहारी

तेरी माँ की

तेज़-तेज़ फावड़ा चला

निठल्ले

यूपी बिहार के चूतिये

तेरी भैण की

तेरी माँ की…

स्रोत :
  • रचनाकार : अरुणाभ सौरभ
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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