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दिल्ली के कवि

dilli ke kawi

कृष्ण कल्पित

अन्य

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कृष्ण कल्पित

दिल्ली के कवि

कृष्ण कल्पित

और अधिककृष्ण कल्पित

    इसमें गए हैं कुछ पुराने शब्द

    जिनका नहीं रहा चलन

    कुछ भावनाएँ गई हैं

    रह गया है कुछ अनघड़पन

    लाख कोशिशों के बाद भी

    कविता नहीं छिपा पाई

    एक कमज़ोर ज़िंदगी

    फटे हुए वस्त्र जूतों के तले

    करुणा आए लेकिन इस तरह

    नहीं कि वह करुणा लगे

    कबूतर को बचाना होगा बने प्रतीक

    यही थी दिल्ली के कवियों की सीख

    मैंने सोचा जिस ट्रेन में बैठकर

    यहाँ आया था वह ट्रेन

    वापस भी तो जाती है

    नई दिल्ली के कवियो,

    चाहे जितनी कमज़ोर दिखे

    मैं अपनी कविता नहीं बदलूँगा।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बढ़ई का बेटा (पृष्ठ 80)
    • रचनाकार : कृष्ण कल्पित
    • प्रकाशन : रचना प्रकाशन
    • संस्करण : 1990

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