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ऐ मेरी प्रिय कविता

ai meri priy kawita

अनुवाद : चंद्रकांत पाटील

नामदेव ढसाल

अन्य

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नामदेव ढसाल

ऐ मेरी प्रिय कविता

नामदेव ढसाल

और अधिकनामदेव ढसाल

    मुझे नहीं बसाना है अलग-सा द्वीप

    मेरी प्रिय कविता, तुम चलती जाओ साधारण

    आदमी के साथ ठेठ उसकी उंगली पकड़ कर

    मुट्ठी भरों की सांस्कृतिक बपौती का मैंने ज़िंदगी भर किया द्वेष

    द्वेष किया अभिजनों का, त्रिमित सघनता पर बल देते हुए

    मैंने नहीं बनाया चित्र ज़िंदगी का

    मैंने आम आदमी के साथ उनके षड्विकारोपर प्रेम किया,

    जानवरों से कीड़े-मकोड़ों से भी

    मैंने अनुभव किया संसर्गजन्य और संक्रामक रोगों का भी

    चकमा देने वाली हवा पर किया अलगद काबू

    सत्य-असत्य की लड़ाई में मैंने नहीं खोया मुझे

    मेरी अंदर की आवाज़, मेरा सही-सही रंग, मेरा

    सही-सही शब्द

    मैंने जीने के कैनवास को रंगों से नहीं, संवेदनाओं से रंगाया

    मेरी कविता, तुम हो प्रत्यक्ष सुंदर सुडौल

    पुराणों की दैवी नारियों से भी अधिक सुंदर

    व्हीनस हो या ज्यूनो

    डायना हो या मॅडोना

    मैंने उनके देह पर का झीना-झीना पर्दा फाड़ दिया

    मेरी प्रिय कविता, मैं नहीं हूँ शिक्षार्थी ‘एकोल बोझार्त’ का

    अनुभव की पाठशाला में मैंने सीखा है जीना-कविता करना :

    चित्र बनाना

    और मनुष्यों का सब कुछ, कुछ

    शून्यभाव के आकाश के नीचे पसंद नहीं है मुझे

    मेघों के मनोज्ञ आकार आकाश में आगे सरकते हुए

    मेरा हृदय उमड़ता है

    मैं तरो-ताज़ा होकर सँभालता हूँ समकालीन ज़िंदगी की

    सामाजिकता को

    रग-रग से बहने वाला ख़ून का सैलाब

    थाड़-थाड़ उड़ने वाला धमनी पर उंगली रखना मुझे पसंद है

    जिस रोटी ने मुझे सताया हमेशा के लिए

    वह रोटी नहीं कर सकी मुझे पराजित

    मैंने उजागर किया जीने की निष्ठा को

    लोग कुछ क्षणों तक भूल जाएँ अपने दुखों-चिंताओं को

    ऐसी कविता की पंक्तियों को लिखा मैंने हमेशा-हमेशा

    मैं भौतिक की उंगली पकड़ कर चैतन्य के पास गया वहाँ

    जी लगना संभव नहीं था सो उसकी उंगली पकड़ फिर से

    भौतिक के पास ही गया

    अस्तित्व-अनस्तित्व के दरमियान होने वाली

    बाह्य रेषाओं को अनुभव किया मैंने - मैंने अनुभव किया साक्षात ब्रम्हांड को

    मेरी कविता, इससे अधिक क्या हो सकता है

    कवि का चरित्र?

    मेरी प्रिय कविता

    मुझे नहीं बसाना है अलग-सा द्वीप

    तुम चलती रहो साधारण से साधारण मनुष्य की उंगली पकड़ कर

    मेरी प्रिय कविता,

    मैंने जहाँ से यात्रा की शुरूआत की

    फिर वहीं आकर रुकना पसंद नहीं है मुझे

    मैं लाँघना चाहता हूँ

    अपने पुराने क्षितिज को।

    स्रोत :
    • पुस्तक : साठोत्तर मराठी कविताएँ (पृष्ठ 114)
    • संपादक : चंद्रकांत पाटील
    • रचनाकार : नामदेव ढसाल
    • प्रकाशन : साहित्य भंडार
    • संस्करण : 2014

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