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जीना जानता था—जिया भी

jina janta tha—jiya bhi

अनुवाद : चंद्रबली सिंह

एमिली डिकिन्सन

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एमिली डिकिन्सन

जीना जानता था—जिया भी

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    जीना जानता था—जिया भी—
    मरना जानता था—मरा भी—

    पूरे पर मुस्करा सकता था  
    क्योंकि उसमें उसकी आस्था थी

    जिससे वह नहीं मिल पाया
    ताकि अपनी आत्मा का परिचय करा पाए।

    परिचित दृश्य से
    वंचित-पद स्थल को जा सकता था—
    यात्रा की कल्पना
    मन में चकित हुए बिना कर सकता था—

    ऐसा विश्वास एक व्यक्ति का था, जो हमारे बीच रहा,
    आज जो हमारे बीच नहीं—
    हम थे जिन्होंने पोत का जल में उतरना देखा
    लेकिन खाड़ी पर नौका नहीं दौड़ाई!

               
    स्रोत :
    • पुस्तक : एमिली डिकिन्सन की कविताएँ : संचयन (पृष्ठ 30)
    • रचनाकार : एमिली डिकिन्सन
    • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली
    • संस्करण : 2011

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