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पता नहीं क्या हूँ

pata nahin kya hoon

प्रभात त्रिपाठी

प्रभात त्रिपाठी

पता नहीं क्या हूँ

प्रभात त्रिपाठी

 

एक

काले जंगलों से बहकर आती हवा हूँ
घमासान रक्तपात की ख़ामोशी 
कीड़ों की अधरात की आवाज़
पदचाप किसी बनैले जंतु की
दुख किसी बारिश की शाम का
आकर घुस गया पेट के रस्ते
हलक़ की जलती डकार तक
और इधर
भागती कार की धूल का कोई कण
आँख में घुसा
तो बस गया वहीं का वहीं
हरहमेश किरकिराती आँख लिए
गालियों से भरी भाषा हूँ
सुबह-सुबह 
मंदिर जाते भक्तों की भीड़ में
अपसगुन-सा कुछ रचने का षड़यंत्र
और अभी 
दूसरे ही दूसरों के समय में
हिसाब हूँ चौकस 
अपने होने की अंतिम जर्जरता का
भविष्य 
क़ब्र की शांति का
गली में खेलते बच्चों की खिलखिल
औरतों की गप्पबाज़ी के दैनिक दृश्य में
अदृश्य कामकीट की तरंग हूँ

अँधेरे में, काले केशों में मुँह छिपा सिसकता
लिखता हूँ अपना प्रेम
बुढ़ापे की असमर्थता में

विचित्र समुद्रफेन में बिखरती लहर में
भिगोता अपने पाँव 
और देखता लंबे केले के पत्तों से लगते
किसी दूसरे पेड़ की 
पत्ता निकलने वाली जगह से
निकलती कली हरिद्रारंगी
गाढ़े रक्तवर्ण में जागती
सुबह की पूजा में
माँ का हवन 

दो

बहन का योगासन 
और अख़ीर तक साथ देने वाले
कुत्ते की आँखों के नीचे की कालिमा
शांत हत्याकांड के नवीन महाभारत में
विवश धर्मराज हूँ 
टेकरी को हिमालय की तरह सोचते
दिमाग़ की भागमभाग में लस्त
ताकता रहता हूँ
अख़ीर के संगवार को अपलक

स्रोत :
  • रचनाकार : प्रभात त्रिपाठी
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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