पश्चिम समुद्र

pashchim samudr

चेन्नवीर कणवि

चेन्नवीर कणवि

पश्चिम समुद्र

चेन्नवीर कणवि

एक

यह समुद्र

वह आकाश

मुँह खोले हैं एक-दूसरे की ओर, अनंतता को निगलने।

कितने ही दिन-रात

लहरों के कंधों पर चढ़कर

शोक के मरुथल में भूमि को डुबाते हुए बढ़ते हैं।

ऋतु-ऋतु एकत्र होकर

नदी-मुख से नाद कर चुके हैं।

पर्वत-पर्वत पीछे खड़े हैं—

रहस्य-से हैं अनजाने,

चढ़ता है उतरता है यहाँ हरियाली का साम्राज्य।

यह देखो आकाश की भव्यता के लिए

समुद्र ने दर्पण धारण किया है

दूसरी भूमिका नहीं चाहिए।

दो

वह देखो वहाँ।

साँस रोककर उठा है द्वीप

नील निद्रा में है लीन

पाल खोलकर स्वतंत्र हो

वरियाँ लहर चढ़ी

जल-धारा को चीर क्षितिज पर चढ़ गई।

जलयान आघात से बना घाव

ओझल हो गया।

इस पश्चिमी तट पर

अनंत निस्वन कैसा।

खाड़ी या अंतरीप

या तैरता यान

देश-देश की आशा-वीचियाँ इसके उदर में संकलित

लहरें उलीच रही फेन, बंदरगाह पर

लिख रही दिनचर्या!

तीन

लहर-लहर तैरकर आने वाली नाव की क्रीड़ा

मछियारों का हर्षनाद।

उछलती मछली

नाचती मछली

मुँह चिढ़ाकर फिसल गई?—

देखो गिरी जाल में

राशि-राशि टोकरी में,

राम चिड़िया चोंच मे दबा उड़ गई

जो मछली थी जाल में पड़ी वह छटपटाई।

छटपटाना व्यर्थ

मछियारों के बच्चे टूट पड़े

उनका उतना ही दाय जितना समुद्र कर दे भेंट

है बात प्रसिद्ध मत्स्यगंधा की सुगंध फैले योजनों।

चार

कल ही मानो युद्ध हुआ मनु-कुल के उद्धार हेतु

आया वह हर लेने समझिए

देश-देशों की शांति तृषा!

पृथ्वी-आकाश हो पाए पर्याप्त

समुद्र में भी पड़ी चिनगारी—

'उद्धरेदात्मनात्मानम्'

जल में सुरंग बिछी—

जहाज़ों में उथल-पुथल हुई

चारों ओर तोपों का समूह

सभ्यता ने आकाश पर चढ़

बमों की वर्षा की

आकाश ही हिल उठा!

सागर-तट पर भी विस्फोट हुआ

स्वाद लिया जिह्वा ने

युद्ध के बारूद गोलों का

फिर भी वह अपर्याप्त?

पाँच

यह समुद्र

वह आकाश

मुँह खोले है एक-दूसरे की अनंतता निगलने को

भूगोल की आयु मिटाने;

डुबोने को वह देखो।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारतीय कविता 1954-55 (पृष्ठ 138)
  • रचनाकार : चेन्नवीर कणवि
  • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी

संबंधित विषय

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY