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प्रकाश की प्रशंसा का गीत - 5

parkash ki prshansa ka geet - 5

अनुवाद : त्रिनेत्र जोशी

आई छिंग

अन्य

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आई छिंग

प्रकाश की प्रशंसा का गीत - 5

आई छिंग

और अधिकआई छिंग

    अज्ञान अंधकार है

    ज्ञान ज्योति है।

    मनुष्य अज्ञान से निकला है,

    मनुष्य जो देवताओं से सर्वप्रथम आग चुराने गया था

    पहला वीर था।

    वह दोनों आँखों पर चोंचों से प्रहार करने वाले

    अग्नि के रक्षक गरूड़ों से निडर रहा

    ही वह देवराज ज्यूस से डरा

    या उसकी विनाशकारी विद्युत कड़क से,

    जब उसने स्वर्ग परिसर से आग चुराई।

    उसके बाद, प्रकाश पर से एकाधिकार ख़त्म हो गया,

    और तब से वह मनुष्य के संसार में पहुँच गया है।

    हमने गंडासे और आग से खेत बनाने की—

    रीत से छुट्टी पा ली है।

    औद्योगिक क्रांति के साथ आए भाप के इंजन,

    न्यूक्लियर भौतिकी ने अणुबम को जन्म दिया,

    और जिस मार्ग से कभी कबूतर भेजे जाते थे, इस रास्ते

    हम उपग्रह भेज रहे हैं...

    प्रकाश हमें एक अजीबोग़रीब दुनिया में ले आया है :

    एक्सरे, जो जीवंत माँस में चमक सकता है,

    लेसर किरणें, जो इस्पात की पर्तों को भेद सकती हैं,

    विवर्तन-टैलिस्कोप, जो व्योम गामी पदार्थों का पता लगा

    सकते है, इलैक्ट्रानिक कंप्यूटर

    जो हमें इक्कीसवीं सदी में धकेल रहे हैं।

    इसके बावजूद, हमारे लिए सब से अधिक मूल्यवान् है,

    अपनी सर्वभेदी दृष्टि,

    हमारे पारंपरिक बुद्धिमान पूर्वजों की दृष्टि,

    यह दृष्टि हर चीज़ को भेद लेती है,

    हर चीज़ की पूर्वघोषणा कर देती है,

    यह माँस और रक्त की बाहरी पर्तों को भेद सकती है

    और हमारी आत्माओं में झाँक सकती है,

    चीज़ों के सारतत्त्व में पैंठने के लिए :

    चीज़ों को निमंत्रित कर रही आंतरिक विधियाँ,

    गति के सभी परिवर्तन

    परिवर्तनों की सभी गतियाँ।

    समस्त विकास और पतन :

    यहाँ तक कि शांत हिमालय,

    अटल उठता जा रहा है।

    ज्ञान का कोई दिगंत नहीं है,

    दिगंत वहाँ है, जहाँ प्रगति रुक गई है,

    पर ज्ञान की कोई सीमा नहीं है,

    वास्तुगत विश्व का अनुसरण करते हुए

    मनुष्य अपने पदचिह्न छोड़ता चला जाता है।

    व्यवहार ज्ञान की सीढ़ी है,

    व्यवहार की पटरी पर ही विज्ञान आगे बढ़ता है।

    व्यक्ति को एक के बाद एक कपाट खोलते चलना चाहिए

    एक के बाद दूसरी बेड़ी को काटते चलना चाहिए।

    व्यवहार की सड़क पर ही सत्य अमर रहता है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सूखी नदी पर ख़ाली नाव (पृष्ठ 171)
    • संपादक : वंशी माहेश्वरी
    • रचनाकार : आई छिंग
    • प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
    • संस्करण : 2020

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