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पक्के रंगों में चित्रित परछाइयाँ

pakke rangon mein chitrit parchhaiyan

अमरजीत टांडा

अन्य

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अमरजीत टांडा

पक्के रंगों में चित्रित परछाइयाँ

अमरजीत टांडा

और अधिकअमरजीत टांडा

    हे पंजाबी मिट्टी, अपनी छाती पर नाचती

    काली परछाइयों को नील समंदर में डुबोकर

    आकाश-आँगन में, घुले ज़हर को

    सुकरात के प्याले में डाल

    बचे-खुचे ढाई दरियाओं को मैली नज़र से बचाओ

    इनकी छाती पर तैरते अपराध ने

    पाँव टिकाने की जगह तक नहीं छोड़ी

    अपने आँगन, कँटीली तार के पार

    तुम्हें याद होगा जब यह लकीर खिंची थी

    आजकल सुर्ख़ सूरज पवन पर होकर सवार

    तुम्हारे माथे के कोने में पलभर चमकता है

    जलती शाम की पीठ में जा छिपता है

    नेताओं के भाषणों से भयभीत

    गलियों के बच्चे बुढ़ा गए हैं

    चुग्गे के लिए उड़ती चिड़ियाँ

    कर्फ़्यू का शिकार हो गईं

    तुम्हारे खेतों और फ़ैक्टरियों की पसीने सनी

    मेहनत को क्या नाम दूँ

    किस छाती के बाहुपाश में छिपाऊँ

    लहू से लथपथ अख़बार के पन्ने

    किस नदी में शांत करूँ सूर्य का जलता शरीर

    तुम्हारे होनहार लाडले खेत नापते क़त्ल हो गए

    तब कोई तलवार उदास नहीं हुई थी

    हे पंजाब भूमि

    मैं तुम्हारे सूने आँगन में

    चाँद बनकर उतरना चाहता हूँ

    अँधेरी ऋतु में

    और आकाश की दहलीज़ पर रुककर

    तुम्हें निहारने का

    ताज़ातरीन स्वप्न इन प्यासी आँखों में है

    जी चाहता है

    रेत के टीले पर खेलते

    तुम्हारी अपरिचित तस्वीर में

    पक्के रंगों की परछाइयाँ उतार दूँ।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 350)
    • संपादक : सुतिंदर सिंह नूर
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक फूलचंद मानव, योगेश्वर कौर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2014

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