Font by Mehr Nastaliq Web

निशा और उषा

nisha aur usha

बोरीस पस्तेरनाक

अन्य

अन्य

बोरीस पस्तेरनाक

निशा और उषा

बोरीस पस्तेरनाक

और अधिकबोरीस पस्तेरनाक

    उषा काल में कहा डाल ने जब सहला चिड़ियों का पर,

    जागो, जागो, आने को है गाने की बेला सत्वर,

    फटक मेह भीगे पंखों को वे नीड़ों से निकल पड़ी,

    मलय पवन पर कलिका झूली, तन से जल की बूंँद झड़ी।

    हुई निशा में सहसा वर्षा, जल की ऐसी बाढ़ चली,

    लगा, नहीं यह रहने देगी एक पेड़, फल, फूल, कली,

    युग-युग के आँसू संचित कर मैंने जिसको सींचा था

    उसे बहा क्या ले जाएगी एक जलधि की लहर बली।

    दुख की घड़ियों में यह बग़िया मेरे मन में आई थी,

    दुख की घड़ियो में ही मैंने इसकी जड़ बिठलाई थी,

    दुख की घड़ियों ने ही इसको उगते बढ़ते देखा था,

    कल ही पहले पहल निशा में इसकी छवि मुसकाई थी।

    सारी रात प्रभंजन मेरी खिड़की को खटकाता था,

    सारी रात प्रभंजन मेरे सपनों को डरपाता था,

    द्वार खुला, घुस मलय पवन का एक सरस झोका बोला—

    वृष्टि थी, तेरे आँसू कोई मोल चुकाता था।

    उषाकाल में जगकर, निशि के दुख-दुस्वप्नों को भूली,

    गृहवाह के मधुप्रवाह में कलियाँ पड़ती थी फूली,

    फूल खिले पड़ते थे अपनी खुली पँखुरियों-सी पलकें,

    झूम रहे थे तरूवर, लतिका की लहराती थी अलकें।

    स्रोत :
    • पुस्तक : चौंसठ रूसी कविताएँ (पृष्ठ 145)
    • रचनाकार : बोरीस पस्तेरनाक
    • प्रकाशन : राजपाल एंड संस
    • संस्करण : 1964

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए