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निर्जन किनारे पर

nirjan kinare par

अनुवाद : चंद्रकांत पाटील

वसंत आबाजी डहाके

अन्य

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वसंत आबाजी डहाके

निर्जन किनारे पर

वसंत आबाजी डहाके

और अधिकवसंत आबाजी डहाके

    पीछे बिल्कुल पीठ के पीछे मर्त्यों का महानगर

    सामने बिल्कुल कानों के पास मन के पास बजता हुआ समुद्र

    एक समुद्र ही है पहचान वाला आदमी इस अजनबी शहर में मेरे लिए

    जो बज रहा है तुम्हारे भीतर से मेरे भीतर, जैसे हमारा सुना हुआ जैज़

    आन्यन्तिक अकेली शाम को

    यह समुद्र-भीतर से आई हुई शाम

    जैसे समुद्र के हाथों में गिटार है और उसके भीतर से

    फैलता जा रहा है समुद्र का गीत

    किनारे पर अपनी पुरानी ज़िंदगी के काग़ज़, मुरझाए हुए फूल, सूखे पत्ते

    तेज़ी से तैरता जा रहा है, श्वेन झाग पर तुम्हारा-मेरा

    तुम्हारा-मेरा बात करना, नहीं करना, एक-दूसरे में देखना

    अभी-अभी कुछ क्षण पहले तुम्हारे पैर भीगी रेत पर

    चलते हुए गुज़र गए मेरे किनारे तक

    मैं तुम्हारे मन के भीतर बजता हुआ समुद्र

    एक तुम ही हो पहचान वाली, इस निर्जन किनारे पर।

    स्रोत :
    • पुस्तक : साठोत्तर मराठी कविताएँ (पृष्ठ 81)
    • संपादक : चंद्रकांत पाटील
    • रचनाकार : वसंत आबाजी डहाके
    • प्रकाशन : साहित्य भंडार
    • संस्करण : 2014

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