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संभावना

sambhavna

रमेश क्षितिज

अन्य

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रमेश क्षितिज

संभावना

रमेश क्षितिज

और अधिकरमेश क्षितिज

     

    अचानक मिलकर पीपल के पेड़ के पास इक दिन
    हमने देखा बदलियाँ छूते शिखरों को
    और इसे दोस्ती कहा
    सपाट-से जीवन के राजमार्गों को
    उजले होते जा रहे नए उफ़ुक को
    चढ़ते जा रहे सपनों के रंगों को देखा
    और इसे जीवन कहा

    पलटकर हार्दिकता की नवीन कृति
    फिर लिखीं उसके ऊपर—शिलालेख-सी अक्षत पंक्तियाँ
    हमने सुनाए हवाओं की प्रिय धुन
    नदी गायिका का सुरीला अलाप
    मुद्दतों से किसी का इंतज़ार हो जैसे
    ऐ! पर्वत
    हमने तुमको नज़्म का चमकीला बिंब कहा

    वैसे तो ठीक ही कहा
    लेकिन वो पुल पार करके जा चुके अकेले परदेसी को
    याद कर खिड़की पे गुमसुम बैठी निराश युवती को
    हमारे इंक़लाब की कहानी की नायिका कहा
    दिवास्वप्न में मगन अधेड़ उम्र के आदमी को
    ऐसे-ऐसे ही नायक कहा

    ख़ौफ़ज़दा अधखुली खिड़की से जुलूस देखने वाले
    युवक को योद्धा कहा
    हमें अपनों से ही बैर करवाने वाले
    षड्यंत्रकारी को अच्छा दोस्त कहा

    अब अर्थों का विघटन होता है
    हमने किसे क्या कहा, किसको क्या माना
    यह मानने वालों को वो माना
    अब कुछ होगा, ज़रूर कुछ होगा

    इतिहास से ग़ुस्साए किसी विद्रोही को
    रात भर खुकरी में धार लगाते हुए सुना।

             
    स्रोत :
    • रचनाकार : रमेश क्षितिज
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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