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नमक

namak

विनोद दास

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और अधिकविनोद दास

    मुँह में कौर डालते ही

    मैं चीख़ता हूँ

    नमक

    पत्नी कहती है

    घर में नहीं है नमक

    कहता है दुकानदार

    बाज़ार में नहीं है नमक

    संसद में उठता है सवाल

    शोर उठता है उठते हैं हवा में हाथ

    हाँफते हुए उठते हैं गोलमटोल मंत्री

    और देते हैं बयान

    बाज़ार में उपलब्ध है नमक

    सस्ते दामों पर

    मैंने जानता हूँ

    यह तय करना मुश्किल है

    मंत्री के सच में है

    कितना नमक

    मैंने सुना है

    इधर उन्होंने त्याग दिया है सेवन

    नमक का

    इस पर मैं कोई टिप्पणी नहीं करूँगा

    मुझे मालूम है

    नमक पचना आसान नहीं है

    कहाँ ग़ायब हो जाता है नमक

    कैसे ग़ायब हो जाता है नमक

    मुझे मालूम नहीं है

    जैसे मुझे मालूम नहीं है

    कैसे ग़ायब हो जाती है शहर से

    अचानक एक रात में

    गंदी बस्तियाँ

    ग़ायब हो जाएगा

    यदि नमक बाज़ार से

    समुद्र दुश्मनों के क़ब्ज़े में भी होगा

    हम थोड़ा-सा बचा रखेंगे नमक

    अपने पसीनों में

    अपने रक्त में

    अपने आँसुओं में

    आख़िरी दिनों तक

    स्रोत :
    • पुस्तक : ख़िलाफ़ हवा से गुज़रते हुए (पृष्ठ 29)
    • रचनाकार : विनोद दास
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
    • संस्करण : 1986

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