Font by Mehr Nastaliq Web

नमक की तरह

namak ki tarah

शंकरानंद

अन्य

अन्य

शंकरानंद

नमक की तरह

शंकरानंद

और अधिकशंकरानंद

    मैं हर चीज़ को

    नमक की तरह गलते देखता हूँ

    बारिश में सूखता है गला

    उस हथेली को खोजता हूँ जो गरम है

    नींद का पता एक जर्जर रात है

    स्वप्न किसी सघन वन का अँधेरा

    जिन लोगों ने मुझे घेर लिया है

    वे भरोसे के क़ाबिल नहीं

    हर बार उनकी भाषा

    संदेह की भाषा लगती है

    एक ही झूठ को दोहरा रहा है बार-बार

    छल की आँखों में बेहिसाब करुणा है

    जिसे रोते देखता हूँ सबके सामने

    उस पर भरोसा नहीं होता अब

    आख़िर कोई इतनी मृत्यु और

    इतनी आह का बोझ दिल पर रखकर

    ज़िंदा कैसे रह सकता है!

    स्रोत :
    • रचनाकार : शंकरानंद
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए