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नदी तो गंगा ही थी

nadi to ganga hi thi

जीवन सिंह

अन्य

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जीवन सिंह

नदी तो गंगा ही थी

जीवन सिंह

और अधिकजीवन सिंह

    वह हिमालय से चलकर आई थी

    सींचती

    करती दूर

    बाहर के कल्मष को

    शीतल-मंद-सुगंधित

    मलयानिल के साथ

    वह नदी थी

    लेकिन लोग

    उसे नदी कहने और मानने से

    झिझकते और डरते भी थे

    माँ ने अपने जीवनकाल में ही

    कह दिया था कि तुम कहीं भी हो

    मेरे फूलों को तुम दोनों ही लेकर जाना

    माँ के जाने के

    एक साल बाद ही

    पिता भी चले गए थे

    तब मैं नहीं गया था

    उनके फूलों को लेकर

    लेकिन अपनी माँ के फूलों को

    शूकर क्षेत्र सुरसरि सरोवर में

    पत्नी के साथ

    प्रवाहित करने के बाद

    गंगा के दूर प्रवाह क्षेत्र में

    एक ट्रैक्टर में बैठकर

    गंगा-स्नान हेतु जा रहा था

    तो मेरे मुँह से

    अचानक गंगा के लिए

    'नदी' शब्द निकल गया था

    कि नदी पाट और कितना दूर है

    तब पास बैठे

    एक सहयात्री ग्रामीण ने

    मुझे झिड़कते हुए कहा था :

    तो गंगा भी एक नदी है

    मैं झेंप गया था

    मुझे तुरंत तुलसी के

    अंगद-रावण संवाद का वह प्रसंग

    याद हो आया

    जिसमें अंगद ने रावण को

    झिड़कते हुए पूछा है :

    सुन रावन कस रे सठ बंगा

    धन्वी काम नदी पुनि गंगा।

    हो सकता है

    यह बहुत भावुक और

    अतार्किक पक्ष हो

    लेकिन यह यथार्थ है

    एक कवि की मान्यता ने

    गंगा को

    उत्तर भारत की

    एक प्राणधारा होते हुए

    नदी के दर्जे से

    बहुत ऊपर उठा दिया

    जगह-जगह पर

    गंगा के मंदिर बन गए

    मेरे जिला मुख्यालय भरतपुर में

    राजशाही ने

    अद्भुत स्थापत्य वाला

    एक भव्य गंगा मंदिर

    अठारहवीं सदी के

    उतार पर बनवाया

    पता नहीं क्यों

    दलित मुहल्लों में

    सबसे अधिक गंगा मंदिर बने

    गंगा की सौगंध उठाने से

    बड़े से बड़े विवाद सुलझने का

    सिलसिला चलता रहा

    दीर्घकाल तक

    यही होता रहा

    हमने गर्व किया

    कि हम उस देश के रहने वाले हैं

    जिस देश में गंगा बहती है

    सचमुच यह भावुकता है

    लेकिन मृत्यु का चरम बिछोह

    किसे भावुक नहीं बनाता

    जिसके ऊपर गुज़रती है

    उससे पूछिए

    उसने पिछले दो महीनों में

    कितना अमूल्य खो दिया है

    जिसे खोने से

    बचाया जा सकता था

    आज उसी गंगा के वक्ष पर

    शव

    तिनकों की तरह

    तैर रहे हैं

    पास में कुत्ते

    नज़र रहे हैं

    यह किसकी ज़िम्मेदारी है

    कि गंगा को

    उसके पद से

    यहाँ लाकर पटक दिया।

    स्रोत :
    • रचनाकार : जीवन सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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