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मुक्ति का दिन

mukti ka din

कुंदन सिद्धार्थ

अन्य

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कुंदन सिद्धार्थ

मुक्ति का दिन

कुंदन सिद्धार्थ

और अधिककुंदन सिद्धार्थ

    एक दिन 

    हम उन पापों के लिए 

    नहीं पछताएँगे जो हमने किए

    उन पापों के लिए हम ज़रूर पछताएँगे

    जो हमने नहीं किए 

    जबकि बार-बार चाहते थे करना

    एक दिन

    हम उन सभी भूलों और ग़लतियों को भूल जाएँगे

    जो हमसे जाने-अनजाने हुईं

    वे भूलें और गलतियाँ याद रह जाएँगी 

    जो हम करना चाहते थे

    और नहीं कर पाए 

    एक दिन 

    जब हम हिसाब लगाने बैठेंगे

    एकबारगी उदास हो जाएँगे यह देखकर 

    कि कितनी ग़ैर-ज़रूरी चीज़ों में समय गँवाते रहे

    तब हमारे पास 

    बहुत थोड़ा समय बचा होगा

    बचा हुआ समय जितना होगा

    उससे बहुत कम दिखेगा

    और हम डर जाएँगे

    एक दिन 

    हम उन लोगों के लिए तो रोएँगे ही

    जो जीवन भर साथ रहे

    उन लोगों के लिए कुछ ज़्यादा रोएँगे

    जो जीवन की शुरुआत में ही बिछड़ गए

    और कभी नहीं मिले

    एक दिन

    हम सिर्फ़ प्रेम के लिए तरसेंगे

    जीवन भर की संचित पूँजी नहीं भर पाएगी

    भीतर का खालीपन 

    धर्म, ईश्वर और इनके इर्द-गिर्द खड़े सारे नैतिक उपदेश 

    निष्फल सिद्ध हो जाएँगे

    वह दिन 

    जीवन की व्यर्थता के बोध का होगा

    उस दिन

    हम सारे द्वंद्वों के पार हो जाएँगे

    छँट जाएँगे हमारी आदिम चेतना पर छाए

    भ्रम और धारणाओं के मटमैले बादल

    गिर जाएँगी मान्यताओं की सारी दीवारें

    जो मनुष्य से मनुष्य के बीच 

    भेद और दूरी रचती हैं

    हर भेद, हर दूरी 

    प्रेम के विरुद्ध सत्ता की साज़िश है

    एक दिन 

    हम ज़रूर देख लेंगे यह सच

    सच को सच की तरह देखना

    हमें तृप्त करेगा

    उस दिन 

    हम अपनी बनाई हुई 

    ईश्वर की तस्वीरों से अपने हस्ताक्षर पोंछ देंगे

    वही हमारी मुक्ति का दिन होगा

    स्रोत :
    • रचनाकार : कुंदन सिद्धार्थ
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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