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मुखौटे

mukhaute

आशीष त्रिपाठी

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और अधिकआशीष त्रिपाठी

    राजा को प्रिय हैं मुखौटे

    राजा जब भी आता है मंच पर

    धर लेता है एक मुखौटा

    कभी रौद्र, कभी वीर

    कभी करुण, कभी हास्य

    अनंत मानवीय भावों वाले मुखौटे

    नरसंहार प्रायोजित करने के बाद

    वीरता का मुखौटा

    साहस पैदा करता है समर्थकों में

    हत्याओं की शृंखला संचालित करने के बाद

    अचानक महात्मा का मुखौटा

    पहन लेना ठीक नहीं होता

    ग़ज़ब है मुखौटों की दुनिया

    कभी-कभी

    जब नागरिकों के सामने

    पहनकर जाते हैं महाभिक्खु का मुखौटा

    तो कोई जान नहीं पाता

    ठीक उसके पहले

    व्यापारी मित्रों को

    जनता की संचित निधि

    और राष्ट्र की संपदा

    सौंप चुके होते हैं चुपचाप

    जब समर्थकों के बीच होने लगती है

    कमी उत्साह की

    राजा पहनते हैं वीर मुखौटा

    हत्याओं से जब ऊबने लगते हैं

    समर्थक हत्यारे

    राजा को पहनना ही होता है

    रौद्र मुखौटा

    कमाल ढाते हैं राजा

    जब वे पहनते हैं विदूषक मुखौटा

    लूट लेते हैं लाख़ों की सभा

    जब वे सभाओं में करते हैं विरोधियों का उपहास

    उनकी नक़ल करते

    बुद्ध का मुखौटा इन दिनों प्रिय है राजा को

    अक्सर उसे लगाकर वे सो जाते हैं

    सभाओं में

    राजा को इतने प्रिय हैं मुखौटे

    कि वे भूल गए हैं इन दिनों

    अपना असली चेहरा

    राजा के मुखौटे ही इन दिनों

    लगातार दीखते हैं हर जगह

    स्रोत :
    • रचनाकार : आशीष त्रिपाठी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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