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मृत्युदंड

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मंजुला बिष्ट

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मंजुला बिष्ट

मृत्युदंड

मंजुला बिष्ट

और अधिकमंजुला बिष्ट

     

    व्यक्ति के लिए

    यदि आप कटिबद्ध हैं
    या मजबूर हो चुके हैं
    एक इंसान को बग़ैर कोई सुबूत छोड़े
    मारने के लिए, तो
    आप ज़्यादा कुछ न करें
    बस...उसकी जड़ें हिलाते चले जाएँ

    देखना!
    ऐसा करने से
    उसके पैरों के आगे की ज़मीन कम होती जाएगी
    वह हर वक़्त-बेवजह चुप रहने लगेगा

    फिर वह
    धीरे-धीरे बग़ैर किसी शोर के सिकुड़ने लगेगा
    आख़िर एक इंसान 
    कब तक यूँ सिकुड़ कर ज़िंदा रह सकता है...

    इस तरह से एक दिन वह
    अपने हिस्से की छह ग़ज़ ज़मीन पर
    अविचल लेटने की प्रतिज्ञा कर लेगा।

    समाज के लिए

    एक समाज को
    अगर मारना हो
    तो सबसे पहले उसके युवाओं को
    सभ्य भाषा व सहनशील संस्कृति से दूर करो
    और ध्यान रहें यथासंभव
    इतिहास उसे बताया ही न जाए
    वर्तमान में उसे 'दूर के ढोल' सुनाते जाना है
    इस तरह से वह भविष्य नाम की अविधि से
    नावाक़िफ़ रहेगा

    और बचे-खुचे तमाशबीन लोगों को
    इन सभी करतबों के वीडियो बनाकर 
    वायरल करना सिखाओ।

    देश के लिए

    आदमी और समाज का मरते चले जाना 
    एक संक्रामक ख़बर सिद्ध होगी 
    फिर भला
    एक देश कैसे साँस ले सकता है!

    फिर भी आप शंकालु स्वभाव के हैं
    तो बस...
    बच्चों को ये सब दृश्य/वीडियो दिखाते जाएँ
    फिर वे पौधें-वृक्ष काटकर माचिस बनाना
    और लोहे को सूँघना-चखना शुरू कर देंगे

    अब...!

    बचे-खुचे हुए नागरिकों में से
    बूढ़े दरवाज़े पर दस्तक के इंतज़ार में मर जाएँगे
    स्त्रियाँ रसोई के ठंडी पड़ने के अकथ दुःख से
    पुरुष एक ज़िम्मेदार मुखिया न बन पाने की शर्मिंदगी से

    और आप...!!
    आप बड़े ही आराम से
    एक देश को विश्व-मानचित्र से ग़ायब करने के 
    महा अपराध से बच निकलेंगे।

    स्रोत :
    • रचनाकार : मंजुला बिष्ट
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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