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चाँद और सूरज

chaand aur suraj

दामिनी यादव

अन्य

अन्य

दामिनी यादव

चाँद और सूरज

दामिनी यादव

और अधिकदामिनी यादव

    गाँव की कच्ची सड़क पर

    पसरता यह पक्कापन

    सुना है विकास के सूरज तक

    जाता है।

    इसी बनती हुई सड़क के किनारे

    कूटे हुए पत्थरों की ढेरी पर लेटा

    गुदड़ी में लिपटा एक ‘चाँद’

    खिल-खिलाता है।

    सामने पत्थर तोड़ने में लगी

    वो बच्ची ही

    इस बच्चे की माँ है,

    शायद वो इसकी ममता ही है

    जो धरातल की कठोरता पर

    मुलायमियत बन पसरी हुई है,

    जभी तो तपती दोपहरी में भी

    बच्चे के चेहरे पर चाँदनी-सी शीतल

    हँसी बिखरी हुई है।

    बच्चे को सीधे धूप से बचाने को

    एक चिथड़ा हवा में तिरछा टँगा हुआ है,

    उसके एक पैबंद से बीच-बीच में

    सूरज झिल-मिला जाता है,

    बच्चा समझ रहा है उसे भी

    कोई खिलौना और

    हाथ-पाँव झटकता-पटकता

    उसे पकड़ में आने को

    हुलसकर पुकारता है।

    यह बनता रास्ता तो

    कहीं-न-कहीं पहुँच ही जाएगा,

    पर मुझे नहीं मालूम

    पत्थरों से अटी,

    ज़मीन पर पड़ी

    इस मासूमियत की पकड़ में कभी

    विकास का कोई सूरज पाएगा?

    स्रोत :
    • रचनाकार : दामिनी यादव
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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