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मोक्ष

moksh

अनादि सूफ़ी

अन्य

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और अधिकअनादि सूफ़ी

    जब तुम अँधेरों से डरकर भाग रहे थे

    छुपने के लिए एक कोना तलाश रहे थे

    मैं पेशानी पर अपनी उंगलियों को

    माचिस की तीली की तरह रगड़ रहा था,

    छाती में साँस रोक रहा था

    उस आसन्न आग को हवा देने के लिए

    जब तुम

    मेरी लाश पर

    अपनी अकर्मण्यता का मातम मना रहे थे

    छद्म करूणा से अपना चेहरा सजा रहे थे,

    मैं तुम्हारी ख़ातिर

    दोबारा जन्म लेने के लिए

    ईश्वर से दो-दो हाथ कर रहा था

    नहीं

    मेरे नायकत्व से

    तुम्हारी मुक्ति संभव नहीं

    मैं बार-बार मरता हूँ और जनमता हूँ

    ताकि तुम स्वयं एक दिन

    अपने नायक बनकर खड़े हो जाओ

    मेरे मोक्ष का दारोमदार भी तुम पर ही है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अनादि सूफ़ी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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