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मिट्टी में सोए लोग

mitti mein soe log

प्रतिभा किरण

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प्रतिभा किरण

मिट्टी में सोए लोग

प्रतिभा किरण

और अधिकप्रतिभा किरण

    वे जो सो गए थे

    मिट्टी की चादर तानकर

    अपने हिस्से की ज़मीन पर

    उनकी बैलें आकर सूँघती रहीं

    और चाटती रहीं मुरझाए फूल

    अपनी घंटियाँ बजाकर

    जगाती रहीं मिट्टी में सोए लोगों को

    वे जो सो गए थे

    मिट्टी की चादर तानकर

    उन्हें पता था कि एक दिन

    उनका शरीर मुट्ठी में समा जाएगा

    इसीलिए उन्होंने माँगा बस मुट्ठी भर चावल

    वे जिन्होंने आसमान की ओर देखने से पहले

    छुड़ाए थे सिर्फ़ आँखों के जाले

    उनके घरों की मकड़ियों ने

    जिया अपना नैसर्गिक जीवन

    वे जो सो गए थे

    मिट्टी की चादर तानकर

    उनके बच्चों ने अपने खिलौने ख़ुद बनाए

    अपनी हँसी को मिट्टी में उभारकर बेचते रहे

    और सिक्कों की खन-खन फाँकते रहे

    मिट्टी में सोए लोगो!

    तुमने माँगा था सिर्फ़ एक मुट्ठी चावल

    तुम्हारे इतिहास में मुट्ठी भर मिट्टी के लिए

    माँगती हूँ दो पापी खुले हाथों से क्षमा।

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रतिभा किरण
    • प्रकाशन : सदानीरा वेब पत्रिका

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