शरणार्थी

sharnarthi

प्रभात

प्रभात

शरणार्थी

प्रभात

तुम गीत गाते थे

लोक गायक थे इलाक़े के

वह कुर्ता जो तुम केवल गायकी के समय पहनते थे

उसे खूँटी पर टाँग देते थे अगले गायन समारोह तक

खेतों में बंडी में ही रहते थे स्याड़े, झकराड़े, चौमासे में

तुम किसान ही नहीं थे केवल

छोटे-मोटे इंजीनियर थे गाँव के

इंजन ठीक करने कुएँ में उतरते थे

पेचकस, पाने, प्लास के साथ

बुनना रस्सी, पीढ़ा और खाट

ऐसे ही जानते थे तुम्हारे हाथ

जैसे गाय के पेट से बाहर आते बछड़े के

पीले खुरों को खींचना

और इतने हुनर के साथ

तुम नहीं थे ज़रा भी ख़ास

हर घर में हर कोई

कमोबेश ऐसा ही था

तुम उस समाज से आते थे

प्राचीन काल से ही जिसकी रुचि थी कलाओं में

तुम्हारी कलाओं का धूल में मिलना

नदियों के धूल में मिलने जितनी पुरानी बात है

तुम्हारी संस्कृति का धूल में मिलना

जंगलों के धूल में मिलने जितनी पुरानी बात है

तुम्हारी कलाएँ अपने आप नहीं मिलीं धूल में

उन्हें धूल में मिलाया गया

तुम्हारे जंगल अपने आप नहीं मिले धूल में

उन्हें धूल में मिलाया गया

तुम्हारी भाषा अपने आप नहीं मिली धूल में

उसे धूल में मिलाया गया

तुम्हारे बीजों का शिकार किया गया

तुम्हारे खेतों का शिकार किया गया

तुम्हारी फ़सलों की क़ीमतों का शिकार किया गया

तुम्हारे मनुष्य प्रेम का शिकार किया गया

तुम्हारी जिजीविषा का शिकार किया गया

तुम उस सभ्यता से आते थे

जो चली आई थी यहाँ तक

बिना युद्धों और नरसंहारों के

अन्न और फूल उगाती हुई

श्रम में रस लेना सिखाती हुई

तुमने अपने बग़ीचों को सूखते देखा

बिना यह जाने कि आख़िर ये कैसे सूखे

तुमने अपने तालाबों को सूखते देखा

बिना यह जाने कि आख़िर ये कैसे सूखे

तुमने अपने बच्चों को सूखते देखा

बिना यह जाने कि आख़िर ये कैसे सूखे

और एक दिन यह हुआ

तुमसे किसी ने नहीं कहा

तुम ख़ुद ही चले गए

नीम के फूलों से भरी खाट को

कोने में खड़ी कर

खेतों में आक और बबूल उगने के लिए छोड़कर

सूने घर में चमगादड़ें लटक जाने के लिए छोड़कर

तुम्हें किसी ने जेल नहीं भेजा

तुम ख़ुद ही चले गए

कंपनियों के हवाले किए जा चुके

राष्ट्र की खुली जेल में

तुम ख़ुद ही जेल से बदतर कपड़े पहनने लगे

जेल से बेकार तश्तरी में खाने लगे

बिना बिछौने के सोने लगे

तुम एक ऐसी खुली जेल में हो

जिसे जेल कहने का चलन नहीं

इसलिए कोई मिलने भी नहीं आता तुमसे

तुम्हारे जिले के बाँध के जिस पानी के अभाव में

तुम्हारे खेत सूख गए

तुम्हारे घड़े के तल में दिनोंदिन मिट्टी बढ़ने लगी

वह पानी यहाँ महानगर में शाॅवरों से ढुलाया जाता है

तुम अपने ज़िले के जिस पानी के पीछे चलते हुए यहाँ गए

तुम्हारे लिए यहाँ भी झुग्गियों में

वैसा ही हाहाकार है पानी का

आजीवन कारावास नहीं है फिर भी

जैसे-जैसे बरस बीत रहे हैं

तुम्हारी वापसी की संभावनाएँ

क्षीण होती जा रही है

तुम्हारे आधार कार्ड में

तुम्हारा क़ैदी नंबर लिखा है

इसे सुरक्षित रखना

अब इतने बरस हो गए तुम्हें

शरणार्थियों की तरह रहते

कि बिना इसके

कभी भी खदेड़ा जा सकता है तुम्हें इस राष्ट्र से

आई साल तुम सरीखों की बढ़ती भीड़ देखकर

समझ नहीं पड़ता

अब इस राष्ट्र में

निवासी अधिक हैं कि शरणार्थी

तुम ज़िंदा लाश हो एक सभ्यता एक संस्कृति की

तुम ज़िंदा लाश हो जीवन में गहरी अभिरुचि की

तुम ज़िंदा लाश हो एक देश की स्मृति की

तुम्हारी लाश को यह कौन अपने आदमी की लाश बता रहा है

काल से टकराती यह आवाज़ किसकी है

इस पृथ्वी पर यह कौन तुम्हें आवाज़ लगा रहा है

स्रोत :
  • रचनाकार : प्रभात
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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