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मौत का आना-जाना

maut ka aana jana

शाम्भवी तिवारी

अन्य

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शाम्भवी तिवारी

मौत का आना-जाना

शाम्भवी तिवारी

और अधिकशाम्भवी तिवारी

    मौत आएगी और नींद से उठा देगी।

    दरवाज़े पर तीन बार दस्तक होगी,

    और चौथी दस्तक पर अंकित होगी

    सूरज के गंगा में डुबुक जाने की हल्की-सी आवाज़।

    मौत पर्दे सिकोड़कर घुसेगी भीतर

    बिना चप्पलें उतारे कमरे में टहलेगी

    और तेज़ कर देगी पंखे की रफ़्तार।

    मैं सिमट चुका होऊँगा

    खिड़की की जाली से बहती रोशनी की सिलवटों में

    और नहीं हटाऊँगा अपने चेहरे से कंबल।

    मौत मेरे नंगे पाँवों के तलवे गुदगुदाएगी

    और मेरी रोती बिल्ली को गोद में उठा लेगी।

    मैं चीख़कर उठूँगा

    किसी भयानक सपने से जागने की भाँति पाऊँगा

    एक सुनसान कमरे में धूल का अबूझ ग़ुबार

    अलमारी की सबसे ऊँची तल्ली पर सोती हुई बिल्ली

    पंखे से छिटकते रोशनी के छींटे

    और अपने मुँह पर किसी का हाथ।

    मौत जाएगी अकेले और मैं दरवाज़े की ओर

    खुली आँखों से ताकता रह जाऊँगा

    क्योंकि अगर मैं सोया

    तो मौत फिर आएगी

    बिना चप्पलें उतारे

    तीन दस्तकों के पार से

    पंखे पर आँखें गड़ाए

    और नींद से उठा देगी।

    स्रोत :
    • रचनाकार : शाम्भवी तिवारी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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