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मातृ-मूर्ति

matri murti

मैथिलीशरण गुप्त

अन्य

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मैथिलीशरण गुप्त

मातृ-मूर्ति

मैथिलीशरण गुप्त

और अधिकमैथिलीशरण गुप्त

    जय जय भारत-भूमि-भवानी!

    अमरों ने भी तेरी महिमा

    बारंबार बखानी।

    तेरा चंद्र-वदन वर विकसित

    शांति-सुधा बरसाता है;

    मलयानिल-निश्वास निराला

    नवजीवन सरसाता है।

    हृदय हरा कर देता है यह

    अंचल तेरा धानी;

    जय जय भारत-भूमि-भवानी!

    उच्च-हृदय-हिमगिरि से तेरी

    गौरव-गंगा बहती है;

    और करुण-कालिंदी हमको

    प्लावित करती रहती है।

    मौन मग्न हो रही देखकर

    सरस्वती-विधि वाणी;

    जय जय भारत-भूमि-भवानी!

    तेरे चित्र विचित्र विभूषण

    हैं फूलों के हारों के;

    उन्नत-अंबर-आतपत्र में

    रत्न जड़े हैं तारों के।

    केशों से मोती झरते हैं

    या मेघों से पानी?

    जय जय भारत-भूमि-भवानि!

    वरद-हस्त हरता है तेरे

    शक्ति-शूल की सब शंका;

    रत्नाकर-रसने, चरणों में

    अब भी पड़ी कनक लंका।

    सत्य-सिंह-वाहिनी बनी तू

    विश्व-पालिनी रानी;

    जय जय भारत-भूमि-भवानी!

    करके माँ, दिग्विजय जिन्होंने

    विदित विश्वजित याग किया,

    फिर तेरा मृत्पात्र मात्र रख

    सारे घन का त्याग किया।

    तेरे तनय हुए हैं ऐसे

    मानी, दानी, ज्ञानी—

    जय जय भारत-भूमि-भवानी!

    तेरा अतुल अतीत काल है

    आराधन के योग्य समर्थ;

    वर्तमान साधन के हित हैं

    और भविष्य सिद्धि के अर्थ।

    भुक्ति मुक्ति की युक्ति, हमें तू

    रख अपना अभिमानी;

    जय जय भारत-भूमि-भवानी!

    स्रोत :
    • पुस्तक : मंगल-घट (पृष्ठ 33)
    • संपादक : मैथिलीशरण गुप्त
    • रचनाकार : मैथिलीशरण गुप्त
    • प्रकाशन : साहित्य-सदन, चिरगाँव (झाँसी)
    • संस्करण : 1994

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