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भयमय जीवन, भयमय प्रेम

bhaymay jiwan, bhaymay prem

अमित तिवारी

अमित तिवारी

भयमय जीवन, भयमय प्रेम

अमित तिवारी

दुकान दर दुकान

छूट के प्रतिशत की गुहार लेकर

पूरी साँझ दौड़ कर जुटाई रसद

मुझे झोले के फटने का डर रहता था

बाज़ार के उठ जाने का

या सस्ती तरकारी के मिल पाने का

मैं अपने बच्चों को घर में बंद कर

उत्साह से फूलता हुआ

छज्जे से देखता था रैलियाँ

मुझे खिड़की के काँच फूटने का डर रहता था

बसवालों के हड़ताल करने का

या जूतों के तल्ले घिस जाने का

मेरी हड्डियाँ पतली थीं

नहीं जुट पाई क्रांति भर हिम्मत

नहीं आया इतना क्रोध

कि मुट्ठी भींच कर कुछ गढ़ तोड़ दूँ

शांति में भी रहा मुझे हिंसा का भय

भयाक्रांत ही मैंने प्रेम किया और उसी में पड़ा रहा।

स्रोत :
  • रचनाकार : अमित तिवारी
  • प्रकाशन : सदानीरा वेब पत्रिका

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