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शब्दों के पार

shabdon ke par

अनुवाद : सिद्धनाथ प्रसाद

लनचेनबा मीतै

अन्य

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लनचेनबा मीतै

शब्दों के पार

लनचेनबा मीतै

और अधिकलनचेनबा मीतै

    भाषा तो बस का टिकट है

    प्रारंभ से गंतव्य तक के लिए

    पहुँचते ही, रद्दी काग़ज़

    बन जाता जेब के लिए भार

    पुल है

    दूरस्थ हृदयों के दोनों किनारों को जोड़ने वाला

    पार होने का साधन

    मनुष्य द्वारा मनुष्य के लिए निर्मित

    लेकिन मुश्किल है यह—

    सह-अस्तित्व के नाम पर हत्या के निमित्त

    मनुष्य का पशुवत प्रयोग

    पुरानी जंग खाई तलवारें

    खोजकर मूढ़ों के श्मशान से

    मार रहे काट रहे एक-दूसरे की

    गर्दनें सिर कोमल हृदय

    विश्व-इतिहास से फाड़ दूर फेंक दिए जाने वाले

    जीर्ण पन्ने चुपके से उठा

    लिख रहे रक्त से रक्त की कथा

    प्रतिशोध की विजय लालसा की

    केवल भिन्न-भिन्न होने से टिकट का रंग

    असमान होने से उपयोगी पुल का हुलिया

    चलो फेंक दें समस्त भाषाएँ आज

    चलें शब्दों के उस पार

    चुप रहें

    एकदम चुप रहें

    चुप्पी में छिपे निस्सीम शब्दों के साथ

    हिलें-मिलें प्रेम से गले लगें

    हृदय के सुकोमल आसन पर

    सुबह-शाम-रात

    नहीं तो :

    जल जाएँगे सर्वभक्षी ज्वाला में

    देखते हुए भी रोक पाने में असमर्थ इस दावानल की

    हो जाएँगे राख सब;

    क्योंकि—

    होता नहीं कोई अंत प्रतिशोध का

    उसमें बस होता है मिटना ही

    नहीं विजय

    सब पराजय ही पराजय।

    स्रोत :
    • पुस्तक : तुझे नहीं खेया नाव (पृष्ठ 25)
    • संपादक : देवराज
    • रचनाकार : लनचेनबा मीतै
    • प्रकाशन : हिंदी लेखक मंच, मणिपुर
    • संस्करण : 2000

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