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महुआ का पेड़ जानता है

mahua ka peD janta hai

पूनम वासम

पूनम वासम

महुआ का पेड़ जानता है

पूनम वासम

महुआ का पेड़ जानता है

महुआ की उम्र कच्ची है

कच्ची उम्र में टपकते हुए महुए को रोकना संभव नहीं

गुरुत्वाकर्षण बल नहीं बल्कि

धरती का संगीत खींचता है उसे अपनी ओर!

बाँस की टोकनी से लिपटने का मोह

महुए को छोटी उम्र में किसी ज़िम्मेदार मुखिया की तरह काम करने को उकसाता है

महुए को प्रेम है पांडु की छोटी लेकी से

उसकी खुली देह के लिए किसी कवच की तरह टप से टपकता है महुआ

महुआ इसलिए भी टपकता है

ताकि इस बार साप्ताहिक बाज़ार में आयती के लिए जुगाड़ कर सके लुगा का

आयती के दिहाड़ी वाले काम के बारे में

महुआ को सब पता है

बड़े छाप वाले फूल और गहरे रंग वाली सूती लुगा भी

कहाँ रोक पाती है उन आँखों की रेटिना को

आयती की देह का पारदर्शी चित्र उकेरने से

शैतानी आँखें ताड़ जाती हैं

गदराई देह पर अंकित गहरे रंग की छाप कहाँ और कैसे फीकी पड़ जाती है

चिमनियों से टकराकर आने वाली दूषित हवा

किसी फ़ुलपैंट वाले के नथुनों से होकर घुल जाए तालाब के पानी में

महुआ का टपकना ज़रूरी हो जाता है उस वक़्त

कि महुआ की मादकता बचाए रखती है जलपरियों को ख़तरनाक संक्रमित बीमारियों से

महुआ टपकता है

अपनी मिट्टी पर

अपनी बाड़ी में

अपने गाँव-घर के बीच

थकी देह के लिए महुआ पंडुम

इंद्र देव के दरबार में रचाई गई रासलीला की तरह है

महुआ के फूल से खेत-खलियान अटे रहें

मन्नत के साथ गायता देता है बलि सफ़ेद मुर्ग़े की

दोना भर मंद पीते ही

पत्तल भर भात खाते ही

पांडु की इंद्रिया लंकापल्ली जलप्रपात के कुंड में डुबकी लगा आती हैं

फुसफुसा आती है चिंतावागू नदी के कान में

अपनी मुक्ति का कोई संदेश गोदावरी के नाम!

काली शुष्क हड्डियों से चिपका हुआ

उसका मांस सब कुछ भुला कर पंडुम गीत गुनगुनाने लगता है

किसी मुटियारी का धरती से अचानक रूठकर

आसमान पर चमकने की ज़िद पूरी करने के लिए

महुआ को टपकना ही पड़ता है

महुआ का टपकना

मिट्टी के भीतर संभावित बीज के पनपने का संकेत मात्र नहीं है

कि महुआ का टपकना

गाँव के सबसे बुज़ुर्ग हाथ की नसों में स्नेह की गर्माहट का बचे रहना भी है।

स्रोत :
  • रचनाकार : पूनम वासम
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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