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माँ को पत्र

maan ko patr

सर्गेई येसेनिन

अन्य

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सर्गेई येसेनिन

माँ को पत्र

सर्गेई येसेनिन

और अधिकसर्गेई येसेनिन

    मेरी बूढ़ी माँ

    तुम अभी तक ज़िंदा हो क्या

    मैं भी अभी ज़िंदा हूँ

    और तुम्हें शुभकामनाएँ भेजता हूँ—

    तुम्हारे छोटे से घर पर

    शब्दातीत संध्या-प्रकाश झरे झर-झर

    उन्होंने मुझे लिखा है—

    तुम अपनी चिंताएँ छिपाए रहती हो

    और मेरे लिए हमेशा की तरह

    लालायित रहती हो

    अपना काम ख़त्म करके

    फटा-पुराना कोट पहने

    तुम मेरे इंतज़ार में

    अक्सर सड़क पर चली आती हो

    जब नीली अँधेरी शाम घिरती है

    तुम्हारी एक ही आशंका रहती है

    कि मयख़ाने के झगड़े में

    किसी ने मेरे हृदय में

    चाक़ू भोंक दिया है

    माँ अपने को शांत करो

    कुछ भी नहीं है यह

    सिवाय परेशान दिमाग़ की

    पागल कल्पनाओं के

    मैं नहीं हूँ कोई ऐसा पक्का शराबी

    और कोई ऐसा दुष्ट

    कि तुमसे बिना मिले ही मर जाऊँ

    मैं हमेशा की तरह

    तुम्हें अब भी प्यार करता हूँ

    और एक ही कामना करता हूँ

    कि मेरी व्यग्रताओं को

    तुम्हारी अनवरत प्रज्वलित अग्नि के

    सानिध्य में शांति मिले

    मैं आऊँगा

    जब बाग़ में कलियाँ खिल रही होंगी

    फल-वाटिका पर बहार बौर की होगी

    बस इतना ध्यान रखना—

    मुझे अलस सुबह

    जगाना ना ऐसे

    आठ साल पहले

    तुम करती थीं जैसे

    स्वप्न जो सो चुके उनको जगाओ मत

    मुरझाए फूलों के प्रेत को बुलाओ मत

    जीवन के वर्जित सुख मैंने

    भोग लिए वक़्त से पहले ही

    अपनी श्रेष्ठ क्षमताएँ

    व्यभिचार में गँवा दीं

    मुझे फिर से धर्मात्मा बनाने की

    कोशिश तुम मत करना

    जो आँखों के सामने से

    एक बार चला गया

    सदैव को चला गया

    मेरी समस्त शक्ति और ख़ुशी तुम हो माँ

    सिर्फ़ तुम—

    मेरी अनिर्वचनीय ज्योति-शिखा

    माँ अब मेरे लिए और चिंता मत करना

    अपने इस पुत्र हित

    दुःखी मत होना

    काम जब ख़त्म हो तुम्हारा

    फटा कोट पहने

    सड़क के किनारे

    इंतज़ार मेरा

    मत करना।

    स्रोत :
    • पुस्तक : एक सौ एक सोवियत कविताएँ (पृष्ठ 111)
    • रचनाकार : सर्गेई येसेनिन
    • प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली
    • संस्करण : 1975

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