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लोहे में पृथ्वी का लोहा देखा

lohe mein prithvi ka loha dekha

मीता दास

अन्य

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मीता दास

लोहे में पृथ्वी का लोहा देखा

मीता दास

और अधिकमीता दास

    लोहा हर स्त्री में अक्सर कम होता है

    पर लोहा लेने की आदत पुरज़ोर होती है

    लोहा सिर्फ़ खदानों में नहीं मिलता

    स्त्री उसे अपने इरादों में लिए फिरती है।

    लौह अयस्क गलाने के लिए

    किसी धमन भट्टी की ज़रूरत नहीं

    लोहा स्त्री दिन रात अपनी पीठ पर गलाती-फिरती है।

    लोहा सिर्फ़ लोहा ही नहीं होता

    होता है शुद्ध लोहा

    ढलवाँ लोहा और पिटवा लोहा

    पिटकर, ढलती हुई स्त्री की तरह

    सोलह आने शुद्ध पिटवा लोहा

    जिसे खदानों से ढोकर नहीं लाती स्त्री

    उस लोहे को लेकर

    जन्म लेती है पीढ़ी दर पीढ़ी।

    ऐसे ही मैंने

    लोहे में पृथ्वी का लोहा ही देखा

    आँसुओं की नमी में

    सीली हवा में

    लोहे को लोहा काटते देखा॥

    स्रोत :
    • रचनाकार : मीता दास
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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