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कुहरिल सूरज

kuhril suraj

अनुवाद : कांता

अन्ना अख्मातोवा

अन्य

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अन्ना अख्मातोवा

कुहरिल सूरज

अन्ना अख्मातोवा

और अधिकअन्ना अख्मातोवा

    कुहरिल सूरज। परेड में सेनाएँ

    कर रही हैं मार्च कर रही हैं मार्च।

    ख़ुश है इस जनवरी की दुपहर,

    बहुत नहीं हैं मेरी चिंताएँ।

    याद है मुझको हर टहनी

    और सिलहुत प्रत्येक।

    झरती है किरमिजी रोशनी

    कुहरे की सुफे़द जाली से छन कर।

    सफ़ेद के अलावा कुछ और नहीं था घर यहाँ,

    शीशों में बंद।

    कितनी ही बार बजाई है घंटी

    मृत्यु-से विवर्ण मेरे हाथ ने।

    कितनी बार...गाते चलो, सिपाहियों,

    खोज ही लूँगी मैं घर अपना,

    अविनाशी बिंबफूलों के पास

    छत के तिरछेपन से लूँगी पहचान।

    किसी ने मगर उठीं दिया है उसे,

    और ले जा चुका है

    शहरों में दूसरे,

    या, दिमाग़ ही से काट ली है वह सड़क

    हमेशा के लिए—

    पहुँचाती थी जो वहाँ तलक....

    निःस्वप्न होती जाती हैं मशकबीनें

    फ़ासले पर,

    चेरी फूलों-सी उड़ती है बरफ...

    और यह भी है साफ़,

    कि नहीं है मालूम किसी को :

    वहाँ नहीं है अब कोई घर सुफे़द।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सूखी नदी पर ख़ाली नाव (पृष्ठ 349)
    • संपादक : वंशी माहेश्वरी
    • रचनाकार : अन्ना अख्मातोवा
    • प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
    • संस्करण : 2020

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