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कुछ पन्नो के इम्तिहानों पे जिया थोड़ी जाता हैं

kuch panno ke imtihanon pe jiya thoDi jata hain

नवल बिश्नोई

अन्य

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नवल बिश्नोई

कुछ पन्नो के इम्तिहानों पे जिया थोड़ी जाता हैं

नवल बिश्नोई

और अधिकनवल बिश्नोई

    जो पास नहीं वो बेहतर है, अपनी सोहबत में बत्तर हैं

    ये कुछ पन्नों के इंतिहाँ हैं, ना ही ये इंतिहा है लाखों की

    भीड़ में रह जाने से, कुछ उम्मीदें टूट जाने से

    कुछ सपने छूट जाने से डरा थोड़ी जाता हैं

    चंद पन्नो के इंतिहानों पे जिया थोड़ी जाता हैं

    कुछ ख़्वाबों की फ़रमाइश पे मरा थोड़ी जाता हैं

    बहुत सालों की मेहनत पर, उस ख़ुदा की रहमत पर

    हर दिन की जेहमत पर मलाल किया थोड़ी जाता हैं

    ख़ुद से क्या नाराज़गी, ख़ुद से कैसा रंज

    बेगाने सवालों पे आँख को लाल किया थोड़ी जाता हैं

    कुछ विफल नतीजों पे, चंद दोगले क़मीज़ों पे

    पराई चीज़ों पे, ग़म के बीजों पे हँसा जाता हैं

    रोकर ख़ुद को बेहाल किया थोड़ी जाता हैं

    हर दाँव, हर ख़्वाईश पे खरा थोड़ी जाता हैं

    चंद पन्नो के इम्तिहानो पे जिया थोड़ी जाता हैं

    कुछ कर जाने की गुंजाइश में मरा थोड़ी जाता हैं

    स्रोत :
    • रचनाकार : नवल बिश्नोई
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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