कोई ऋषि नहीं, यह कुत्ता लिख रहा है

koi rishi nahin, ye kutta likh raha hai

बद्री नारायण

बद्री नारायण

कोई ऋषि नहीं, यह कुत्ता लिख रहा है

बद्री नारायण

बुदबुदाहटें दुनिया भर के उत्पीड़ितों की सबसे विश्वसनीय दस्तावेज़ होती हैं

अतः मैं इस औरत की बुबुदाहटों को पढ़ता हूँ

जो ठिठुरती ठंड मे सप−सप चलती हवा के बीच

इस पृथ्वी पर एक ट्रेन के एक डिब्बे में बैठी है

जिसका नइहर मसौढ़ी है और ससुराल जहानाबाद

जो अपना परिवार लेकर कलकत्ता भाग जाना चाहती है

उस परिवार को लेकर, जो अब इस दुनिया में बचा ही नहीं है

वह चीख़ रही है, चिल्ला रही है। उन चिल्लाहटों में हैं, कुछ ऐसी चिल्लाहटें

जो दुनिया में उपलब्ध विपुल साहित्य भंडार में कहीं नहीं हैं

लिखित साहित्य में तो बिल्कुल नहीं

सपसपाती ठंड में वह जिसे देखती है कंबल ओढ़े

मेरा कंबल, मेरा कंबल

कहकर चिल्लाने लगती है

मेरा कंबल दे दो, दे दो मेरा कंबल

वह जिसे देखती चप्पल पहने

मेरी चप्पल, मेरी चप्पल देखिए वह मेरी चप्पल लिए है,

कहकर चिल्लाने लगती है

गाड़ी रुकती है किसी स्टेशन पर

यार्ड में घूमता लाइनमैन डाँटता है—चुप पागल

उसी समय जाने क्यों एक कुत्ता रोना शुरू करता है

हो सकता है, उस कुत्ते की रुलाई में इस औरत की किसी महान

विपदा की गाथा छुपी हो

जिसे गार्ड, ड्राइवर, जनता और लाइनमैन जानते हों

जो उसके पागल होने की संभावना को जड़ से निरस्त करती हो,

जो उस ओरत का पुलिस और हत्यारों के ख़िलाफ़

जीवन भर किए गए असफल प्रतिरोध का शोकमय आख्यान हो

और जिसे कोई ऋषि नहीं, यह कुत्ता लिख रहा हो।

स्रोत :
  • पुस्तक : शब्दपदीयम् (पृष्ठ 13)
  • रचनाकार : बद्री नारायण
  • प्रकाशन : वाणी प्रकाशन
  • संस्करण : 2004

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