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किया जाना था बहुत कुछ

kiya jana tha bahut kuch

अच्युतानंद मिश्र

अन्य

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अच्युतानंद मिश्र

किया जाना था बहुत कुछ

अच्युतानंद मिश्र

और अधिकअच्युतानंद मिश्र

    जबकि ख़र्च किया जाना था पूरा जीवन

    उसे बचाने की जुगत में लगा रहा

    अपने गिर्द फैले उदास समय को देखता रहा—

    वसंत की तरह

    एक स्वप्न और फिर कई स्वप्न

    और कई सपनों से निकलते स्वप्न

    थकान का फ़ुटपाथ लंबा था

    घंटों का सफ़र तय किया वर्षों में

    और कुछ वर्ष निकालकर

    जीवन को रूमाल की तरह

    तह कर दिया

    स्वप्न केवल स्वप्न

    रात और गहन अँधेरी रात

    नींद के तहख़ानों में बंद अकेली आवाज़

    यह जो चीख़ा है

    वहीं नींद है?

    कुछ भी

    जो कुछ भी था

    वह धुँधला था—

    एलबम की पुरानी तस्वीरों की तरह

    पीली याद की धुँध

    आँखों की उदासी में घुल रही थी

    जबकि किया जाना था बहुत कुछ

    एक पुरानी चिट्ठी

    —जो कभी ज़िंदगी की तरह नई थी—

    का जवाब लिखा जाना था

    चिट्ठी में लिखे गए जवाब सवाल करते थे

    क़तार में खड़े थे लोग

    क़तार में खड़ा था जीवन

    कितना कुछ सोचते थे लोग

    कितना कुछ चाहता था जीवन

    लेकिन गहराती हुई शाम में

    लेकिन ठहरी हुई सड़क पर

    लेकिन उतरे हुए चेहरों के हुजूम के पार

    एक और शाम थी

    गहरी और उदास

    एक और सड़क थी

    बरसों से ठहरी हुई

    कुछ और लोग थे

    धरती का चक्कर लगाते हुए

    लेकिन यह अंत नहीं था

    यह शुरुआत भी नहीं थी

    जबकि यह एक

    ख़राब शुरुआत हो सकती थी

    एक त्रासद अंत भी हो सकता था

    और कुछ भी नहीं हो सकता था

    जबकि किया जाना था बहुत कुछ

    स्रोत :
    • रचनाकार : अच्युतानंद मिश्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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