कितनी कम जगहें हैं प्रेम के लिए

kitni kam jaghen hain prem ke liye

सीमा सिंह

सीमा सिंह

कितनी कम जगहें हैं प्रेम के लिए

सीमा सिंह

कितना तो सहज होता है

मौसम का यूँ ही मीठा हो जाना

शेफ़ालियों का अनायास झर जाना

बारिशों का सोंधा हो जाना

भर जाना आकाश का संभावनाओं से

और पेट में तितलियों का उमड़ आना

कुछ भी तो नहीं होता प्रेम में क्रांतिकारी

कि बिछा दी जाएँ लाशें उसके नाम पे

लड़े जाएँ युद्ध

धार की जाए हथियारों में

कितनी तो साधारण होती हैं उसकी इच्छाएँ

भोली... एक बच्चे के मन जितनी

एक बार मिल कर...एक बार और मिलने की इच्छा

मिल कर वापस जाने की इच्छा

प्रेमी आँखों में डूबने की इच्छा

पहरों चुप में एक दूसरे को सुनने की इच्छा

मौन साधने की कला योगियों ने

अवश्य सीखी होगी प्रेमियों से ही...

हठयोग जन्मा होगा इनकी ही प्रतीक्षा में

प्रेम में होना जीवन के ठीक बीच में होना है

तितली के पंखों जितना हल्का और उतना ही रंगीन

राजा को चाहिए कि बदल दे अपनी सभी जेलों कों

प्रेमियों की शरणस्थली में

(दुनिया में कितनी कम जगहें है उनके लिए)

द्वारपालों के हाथों से छीन ले भाले

ज़ब्त कर ले सभी हथियार अपने सिपाहियों के और

भेज दे उन्हें एक लंबे अवकाश पर अपनी प्रेमिकाओं के पास

तानाशाहों को चाहिए कि वे

नेस्तनाबूत कर दें अपनी सभी प्रतिमाएँ

स्वीकार करें अपना प्रेम देश के राजमार्ग पर

ताकि करनी पड़े उन्हें आत्महत्या

घुप अँधेरे तहख़ानों में

सेना-नायकों को चाहिए

उड़ेल दे अपने टैंकों की सारी बारूद समुद्र में

और जोत दें उन्हें सरसों के खेतों में

किसान के पसीने की गंध में लिपटी फ़सलें

सिपाहियों की वीरता के क़िस्से सुनाएँगी

प्रेम बेख़ौफ़ हो फूटेगा धरती की कोख से

ईश्वर को चाहिए

कि वह चूमे फिर से माथा

अपने बिछड़े प्रेमी का, भर आलिंगन

जैसे चूमा था उसने सृष्टि के आरंभ में

उतना ही पवित्र उतना ही अबोध

वसंत के खिलने से पहले।

स्रोत :
  • रचनाकार : सीमा सिंह
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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