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किताबों में आदमी

kitabon mein adami

रमेश ऋषिकल्प

अन्य

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रमेश ऋषिकल्प

किताबों में आदमी

रमेश ऋषिकल्प

और अधिकरमेश ऋषिकल्प

    हमारी आदत है

    किताबों में

    आदमी तलाश करने की

    और

    काग़ज़ों के ऊपर

    पूरा देश बना देने की।

    इतना भर कर के

    हम मुकम्मल हो लेते हैं।

    जो किताबों में है

    काग़ज़ पर उतरा है

    वह कहाँ है?

    उसे हम क्या कहें?

    उसका हम क्या करें?

    ये सारे सवाल

    हमें एक तलघर में उतार देते हैं।

    हम अँधेरे में

    अपने आपको

    एक मोमबत्ती के तौर पर जलता पाते हैं।

    रोशनी में अहसास होता है कि

    किताबों में आदमी टँका ही नहीं।

    काग़ज़ों पर एक धब्बा है

    जिसे हम देश कहते रहे।

    कुछ लकीरों को

    नदी मानते रहे।

    पर आदमी नदारद रहा।

    आदमी

    किताबों में है ही नहीं

    उसे काग़ज़ों में जीना

    पसंद नहीं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : हथेलियों के पुल (पृष्ठ 33)
    • रचनाकार : रमेश ऋषिकल्प
    • प्रकाशन : पराग प्रकाशन
    • संस्करण : 1989

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