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किम् आश्चर्यम्?

kim ashcharyam?

आशुतोष दुबे

अन्य

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आशुतोष दुबे

किम् आश्चर्यम्?

आशुतोष दुबे

और अधिकआशुतोष दुबे

    कुछ भी अचानक नहीं होता

    आप नाटकों को बरतरफ़ कीजिए

    और नाटकीय प्राणियों को भी

    जो आश्चर्य में दचके खाते हैं

    विस्मयादिबोधक चिह्नों में सराबोर

    होने की एक निश्चित प्रक्रिया है

    जिसमें लगातार हो रहा होता है

    कहीं कहीं, कुछ कुछ

    हाथ मिलाने से शुभरात्रि कहने तक

    सफ़ेद हो चुका होता है

    एक आदमी के सिर का बाल

    टाइपराइटर ठोकते हुए नौ से पाँच के बीच

    एक नवजात झुर्री करवट ले लेती है आँखों के गिर्द

    जिसका रोना सुनाई देता है आईने में

    एक दिन का करिश्मा नहीं होती दीवार पर काई

    हवा का कुछ जाने कब से

    मिलता रहता है दीवार के कुछ से

    दसों दिशाओं में जाता है अन्नगंध का निमंत्रण

    और तब अक्षौहिणी आती दीखती है चीटियों की

    मैल और रगड़ से छीजते हुए

    जीवन के व्यर्थ हुए वर्षों की तरह

    उखड़ने लगते हैं एक दिन

    कंघी के दाँते निरायास

    और किसी दुर्विपाक की तरह नहीं

    इसी तरह मुड़ते हैं आत्मा के कोने भी

    धीरे-धीरे पुरानी किताब के पन्नों की तरह

    स्रोत :
    • पुस्तक : यक़ीन की आयतें (पृष्ठ 76)
    • रचनाकार : आशुतोष दुबे
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 2008

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