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कि मेरा पता चलना मुश्किल है

ki mera pata chalna mushkil hai

नवीन सागर

नवीन सागर

कि मेरा पता चलना मुश्किल है

नवीन सागर

मैं इस तरह परास्त हो गया हूँ

कि प्रेम को कुछ और कहते-कहते

कुछ और हो गया हूँ सामने

जब एक चेहरा धीरे-धीरे अपने में डूबकर

मेरी ऊब के सन्नाटे में फैल रहा है

प्रेम को प्रेम कहने की आवाज़

जरा-जीर्ण मृत्यु के आकार में परास्त है

मैं इस तरह परास्त हो गया हूँ

मेरी भावनाएँ गहरी

मेरे पाप की तरह अपने आप मरती

जीती हैं मेरी नींद के दरिया में

भँवर

मेरी ख़ामोशी मेरे हर शब्द से परास्त

मैं इस तरह परास्त हो गया हूँ

कि मेरा पता चलना मुश्किल है।

स्रोत :
  • पुस्तक : जब ख़ुद नहीं था (पृष्ठ 52)
  • रचनाकार : नवीन सागर
  • प्रकाशन : कवि प्रकाशन
  • संस्करण : 2001

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