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ख़ाली जगहें

khali jaghen

निर्मला गर्ग

निर्मला गर्ग

ख़ाली जगहें

निर्मला गर्ग

 

एक 

एक से अधिक मोर्चे हैं जिन पर हमें रोज़ भिड़ना होता है 
दिखने में मामूली हैं ये 
पर युद्ध के मोर्चे से अधिक कठिन अधिक पेचीदा 

दो 

पहले प्रकाश आया दुनिया में या कविता आई
कौन बतलाएगा?
शीशम के इन पेड़ों से पूछूँ अथवा प्राचीन पोथियों से?

समुद्र बतला सकता है शायद?

तीन 

सबसे ताक़तवर सबसे सुरक्षित सबसे ख़ुशहाल देश का गर्व 
एक दिन बदल गया 
धुआँ आग और आँसुओं में
उसके ग़म और ग़ुस्से के आगे टिक नहीं पा रहा 
कोई विचार 
जघन्यतम प्रतिशोध भी पड़ रहा है छोटा 

चार 

मैं जीवन के बारे में सोच रही हूँ 
मुझे दिखलाई देता है ईर्ष्या का चेहरा
मेरे कपड़े सादे हैं व्यवहार पारदर्शी 
चाहती हूँ लोग समझें
इन सबका मतलब 

पाँच 

ईश्वर कहीं नहीं है 
पर उसके वारिस हर जगह हैं

यह नियम न प्रकृति का है न विज्ञान का 

छह 

मैं अपनी सबसे अच्छी कविता 
काग़ज़ पर नहीं 
लिखूँगी—
पत्ते पर 
पेड़ प्रकाशक से ज़्यादा उदार 
ज़्यादा समझदार होता है 

सात 

गोदामों में भरा अनाज सड़ रहा है 
लोग मर रहे हैं ज़हरीली चीज़ें खाकर
इन ‘दो पंक्तियों के बीच’ इतनी ख़ाली जगह 
कैसे छूट गई 
मन हो रहा है पूछूँ राजेश जोशी से 

आठ

घिसी पेंसिलें और घिसे चेहरे 
दोनों ही मुझे अपनी ओर खींचते हैं
देखती हूँ दोनों में मैं।

स्रोत :
  • पुस्तक : सफ़र के लिए रसद (पृष्ठ 116)
  • रचनाकार : निर्मला गर्ग
  • प्रकाशन : मेधा बुक्स
  • संस्करण : 2007

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