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कविता

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सुरेंद्र स्निग्ध

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और अधिकसुरेंद्र स्निग्ध

    पूर्वजन्म के बारे में

    (कविताओं में जो शुचिता, कोमलता एवं नकली आदर्श की खोज करते हैं, ये कविता उनके लिए नहीं है। कृपया वे भी इस कविता को पढ़ें जो हज़ारों वर्षों से बाह्मणवादी परंपरा के सहारे हमारा शोषण करते रहे हैं। उन तमाम संपादकों एवं आलोचकों के लिए यह कविता एक गाली है—जो कविताओं को पढ़ने के पहले कवियों का कुल-गोत्र जानना चाहते हैं)

    अब अधिक ही आक्रामक हो गए हैं वे।

    कुछ अधिक ही संगठित

    कुछ अधिक ही लामबंद

    हमें तो जन्म-जन्मांतर में विश्वास नहीं है पंडित जी—

    आपका है—होना भी चाहिए—क्योंकि इसी जाल-फाँस में

    चल रही है आपकी व्यवस्था। सुव्यवस्थित और सुदृढ़।

    तो ऐसा है पंडित जी, आपके विश्वास को थोड़ी देर के

    लिए मानकर चलते हैं हम—पूर्वजन्म में आप ज़रूर रहे

    होंगे बाराह—जिसके थूथन पर अवस्थित और व्यवस्थित है

    यह घूमती हुई पृथ्वी।

    आजकल आपका गठबंधन हो गया है एक क्षत्रिय आलोचक वीर पुरुष के साथ जिसे घृणा है ऐसी दुनिया से जिसमें बसती हैं दलित जातियाँ, जिसमें बसते हैं स्त्रियाँ और पिछड़ा समुदाय, जो हिमाक़त करते हैं अक्षरों की दुनिया में घुसने की।

    जब से ध्वस्त हुई है सोवियत रूस की सामाजिक व्यवस्था, लोग-बाग कहते हैं तभी से असंतुलित हो गई है सोचने-समझने की आपकी दुनिया। अनाप-सनाप बकने लगे हैं तभी से श्रीमान। आज भी पूरी निष्ठा के साथ आप कर रहे हैं बनियों और बाभनों की सेवा। सभी तरह के दुष्कर्मों में डूबे रहते हैं आकंठ।

    आपकी भी है अपनी एक सत्ता। आपकी भी है एक चेले-चपाटियों की दुनिया। साहित्य के तंबू में आपने लगा रखे हैं ढेर सारे खंभे और खूँटे। इसी तंबू में अपनी टेढ़ी पूँछ के साथ इन दिनों विचरण करते हैं आप बाराह जी महाराज।

    आपके थूथन से इन दिनों निकल रहे हैं ढेर सारे ब्रह्मवाक्य मसलन, सचिन तेंदुलकर इसीलिए महान बल्लेवाज है क्योंकि वह है श्रेष्ठ द्विज-विनोद कांबली कभी भी बड़ा क्रिकेटर हो ही नहीं सकता क्योंकि वह है दलित। सारी मेधा, सारा शौर्य, सारा पराक्रम होता है सिर्फ़ द्विजों के पास-स्त्रियों को जलाने और प्रताड़ित करने में आपका है विश्वास क्योंकि अब वे भी माँग रही हैं आधी दुनिया और अक्षरों की दुनिया में करने लगी हैं प्रवेश। साहित्य, कला, संस्कृति और जीवन के दूसरे क्षेत्रों में भी वे ढूँढ़ने लगी हैं अपना स्पेस-स्त्रियों की यह हिमाक़त-ज़िंदा जला डालने के पक्षधर हैं आप।

    आपके थूथन से जो आप्त वचन फूटते हैं उसमें से आने लगी है अब सड़े हुए मल की बदबू। लोग तो यह भी कहने लगे हैं कि ठाकुरों के साथ इसलिए चक्कर काटते हैं आप कि नित प्रातः उनके द्वारा त्यागे गए उत्तम मल का आप कर सकें भक्षण। इसे तो आपने पूर्वजन्म के संस्कार में ही पाया होगा-अब हम कर रहे हैं इस पर सहज ही विश्वास।

    स्रोत :
    • रचनाकार : सुरेंद्र स्निग्ध
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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