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कविता की आत्मकथा

kavita ki atmaktha

कलानाथ मिश्र

अन्य

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कलानाथ मिश्र

कविता की आत्मकथा

कलानाथ मिश्र

और अधिककलानाथ मिश्र

    मैं नहीं कल्पना मात्र कवि की

    नहीं व्यंजना किसी निजी दुख की

    नहीं दिवा स्वप्न किसी सुखकामी का

    नहीं सुकमार भावना किसी प्रिय की।

    मैं नहीं मात्र छंद-बंध का चमत्कार

    मैं नहीं स्वछंद शब्द क्रीड़ा विकास

    नहीं मनोरंजन किसी रति-कामी का

    नहीं मात्र शृंगार अलंकारों का।

    मैं शारदा की विरल वरदान प्रिय!

    मैं दिव्य लोक से चलकर आई

    नर-पषुओं को मनुष्यत्व सिखाने

    मनुज संस्कृति की ज्योति जगाने।

    मैं विद्युत कण सी छटा विखेरती

    रक्त धमनि में स्पंदन भरती

    मानवता के पूजा की प्रथम पुष्प

    पथ भ्रमित को सतपथ दिखलाती।

    मैं भाव तुणीर की बाण प्रिय

    पाषाण हृदय को भेद अतल से 

    संवेदना की निर्झरणी बन आती

    मैं घृणा द्वेष का भाव मिटाकर

    स्नेह-प्रेम की फूल खिलाती॥

    मैं विचार अनल की चिनगारी

    हिम घनीभूत हृदय में कर प्रवेश

    भावों की उज्वल ज्वाला फैलाती

    निष्क्रिय विचारों को पिधलाकर

    भाव, विवेक की ज्योति जगाती॥

    स्रोत :
    • रचनाकार : कलानाथ मिश्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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