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अभी भी अगर

abhi bhi agar

वासुदेव ‘रेह’

अन्य

अन्य

वासुदेव ‘रेह’

अभी भी अगर

वासुदेव ‘रेह’

और अधिकवासुदेव ‘रेह’

    घबरा गए ढोलक की ही थाप से अगर पंछी

    पाप है ढोल बजाना

    बारूद वही अच्छा जो राहों के पहाड़ फोड़े

    शोर वही अच्छा जो युग को जागृत कर दे

    छोटी-सी ही बात बहुत भारी

    यदि दिल तोड़े

    बहुत दूर हैं वे दिन शायद मुझसे

    पाताल लोक में जब भटकाएँ राह ‘हियमाल’ की

    क्या पता है कि इस झंझा में

    कौन क्यारी बचती है, कौन फूलों का पेड़

    गिरता है

    धुल जाएगी मेहंदी कितनों की ओलों में

    चुपचाप बहाएगी आँसु

    कितनी वन परियों का दम

    भीतर-ही-भीतर घुट जाएगा

    काश बेभरोसा नहीं भाग्य हो आस्थावान का कभी

    संजोए जो कण कण, चेतना खोए

    वंचित संचित से हो जाए

    मेरी धरती का आँचल कभी

    ख़ून में डूब जाए

    बंद कभी हो हवा, बादल

    नभ को ख़ूनी रँग दें

    चले जीवन भर के लिए, मिले एक धूप का ही जो दिन

    भुला सकूँ जो कभी किसी क्षण

    अपनी ठिठुरन।

    मेरी बातें खरी नहीं उतरी जो अब तक

    आकांक्षाएँ मगर जगी हैं

    मन यद्यपि दर्पण नहीं हो सका

    अगर यह समय ऐसे ही गुज़रेगा, खो जाएगा

    अगर जगत् ने छोड़ ही दिया

    तो इसी झूठी दुनिया का मारक कुल्हाड़ा

    कितने शीतल छाँह पेड़ों पर पड़ सकता

    कितने दिल टुटेंगे

    अगर प्यार की, भड़क रही ज्वाला है

    देख पतंगा मगर जो इसको पहचाने...

    दाग़ प्रेम का यह है

    ऐसा है मनुष्य तो क्योंकर हुआ ख़ून क्या प्यासा?

    एक रक्त दामन में समेटे

    दूजा अपना आँचल आँसू से भर दे।

    कहते हैं नाज़ुक दिल को दहला देती है सिहरन भर।

    (मूल शीर्षक : वुनि ति हरगाह)

    1.हियमाल- लोककथा की नायिका जिसे प्रेमी ‘नागराय’ के कारण पाताल लोक में नागिनों का

    द्वेष सहना पड़ा था।

    स्रोत :
    • पुस्तक : उजला राजमार्ग (पृष्ठ 47)
    • संपादक : रतनलाल शांत
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक मोहनलाल ‘आश’ और रतनलाल शांत
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2005

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