कहानी

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मलयज

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मलयज

धूप की मुट्ठी में अमरूद

और आसमान, के कुल बाल हिना से रँगे!

एक अच्छी-सी कहानी सुनने की मुद्रा में

पेड़ उकड़ूँ बैठ गए हैं...

कहानी सुनने को तैयार हम भी हैं—

एक सोनपंखी चिड़िया जो

रूपगर्विता रानी से बताती है कि तू

पाँव की धोवन बराबर भी नहीं है उसके

जिसके सोने के बाल हैं

और मोती के आँसू

शायद हमें भी वह द्वीप बता दे

जहाँ मिट्टी में कुछ अस्थियाँ दबी हैं

और ऊपर चंपा के फूल...

...लेकिन जाड़े में चुंगी के मुंशी जी

परेशान हैं गर्मी से

सिर के बाल नोचते खों खों करते

जवान क्वाँरी बेटी 'शांती' को पुकार पुकार

मुहल्ले को अशांत कर रहे हैं,...

और एकाएक कहानी का कोण बदल जाता है—

शर्मीली सयानी धूप पीठ फेर छिप गई;

पेड़ों ने झुक कर देखा

एक नया अजूबा

चंपा के फूल की पंखुरियों तले

बित्ते बित्ते भर शिशु और गाढ़े पंजों की फाँस

रक्त-वृत्त बनाती दौड़ती परछाइयाँ अनेक

ख़रबूज़े को देख रंग बदलती हुई,

और विजय का सेहरा बाँधने को

मन में

मुहल्ले के बेकार नंगे सब राजे-महाराजे तैयार...

मैं

बबूल की अँगुलियों में महाकाव्य का

घोंसला लिए बैठा हूँ

कोकिलाएँ जब वसंत के गीत गा गा

अपने प्रियतमों को रिझा चुकेंगी

जब आम्रगंध में झूम झूम क्षितिज सो जाएगा

तब रचना की अनपकी कड़ियाँ

सृजन के अधूरे निश्चय

गर्भपतित अंकुर

मेरे घोंसले में चुराकर डाल दिए जाएँगे।

मैं, जो देखता हूँ जब देखने को कुछ नहीं रहता

जागता हूँ

क्योंकि सोने को नहीं हैं वसंत के नरम बिछौने,

सेता हूँ वे गर्भपतित अंकुर

कई रातों और सुबहों तक

और उस एक प्रकाशित क्षण तक

जब मेरे बूझे हुए भ्रम का दर्द पंख खोल

उड़ जाएगा;

अँगुलियों में फँसे होंगे दो चार नौसिखिए पर

और एक बड़ी-सी आह का पत्थर

घोंसले के मुँह पर...

...ए अच्छी धूप, लौट

यह पत्थर चिकना है

(या अभिव्यक्ति ही असंपृक्त हो गई है?)

मुट्ठी में अध-खाया अमरूद लिए

जब तू थिरक थिरक नाचेगी

कहानी की लाज तब निश्चय ही भाग जाएगी,

और तू जान जाएगी

जिस वैतरणी के किनारे बैठ वह आदमी

सुनाया करता था कहानियाँ

वह सूख गई है...

स्रोत :
  • पुस्तक : ज़ख़्म पर धूल (पृष्ठ 3)
  • रचनाकार : मलयज
  • प्रकाशन : रचना प्रकाशन
  • संस्करण : 1971

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