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काश यह प्रेम-कविता होती

kaash yh prem kavita hoti

राकेश कुमार मिश्र

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राकेश कुमार मिश्र

काश यह प्रेम-कविता होती

राकेश कुमार मिश्र

और अधिकराकेश कुमार मिश्र

    मुझे लगता था

    इस दौर के तमाम फ़िल्मी प्रेम-गीतों में

    स्वर तुम्हारा है

    और उसका हीरो मैं हूँ

    एक निश्चित संबोधन के साथ

    तुम कमरे में प्रवेश करतीं

    और वह दंतहीन, पूँछहीन कमरा

    मुझे निगलने को दौड़ता

    मेरे पैर काँपते आधार की खोज में

    मैं भागता

    और मेरे लिए पूरी पृथ्वी छोटी पड़ जाती

    जो डरावने सपने मुझे बचपन में

    दादी-नानी के क़िस्सों से आने थे

    वे मुझे तब आए

    जब मैं तुमसे मिला

    जब डायरी के एक कोने में मैंने

    तुम्हारा नाम लिखा

    और आश्चर्य कि

    उन डरावने सपनों में

    भूत होते थे, पिशाच

    बल्कि ख़ुद तुम्हारे पिता होते

    जो हर बार एक ही सवाल दुहराते

    'तुम्हारी हैसियत क्या है?'

    स्रोत :
    • रचनाकार : राकेश कुमार मिश्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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