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काम से लौटे हुए लोग

kaam se laute hue log

यशवंत कुमार

अन्य

अन्य

यशवंत कुमार

काम से लौटे हुए लोग

यशवंत कुमार

और अधिकयशवंत कुमार

    काम से लौटे हुए लोग

    घर लौटने से पहले

    ज़िंदगी में लौटते हैं

    साइकिल से चलते हुए

    वे तोरई और सिंघाड़ा का भाव पूछने के लिए

    रुक जाते हैं चौराहों पर

    और अपनी जेबें खंगालने के बाद

    फिर चल देते हैं

    मेथी और पालक पर पानी मारता हुआ आदमी

    उन्हें किसी देवदूत की तरह दिखाई देता है

    कड़ाहियों में छानी जा रही जलेबियों

    की दुनिया में वे गुम हो जाते हैं

    तभी उन्हें खाँसती हुई बेटी का चेहरा

    याद आता है और वे

    किसी दूसरी दिशा में

    तेज़ी से पौडिल मारते हुए अदृश्य हो जाते हैं

    घर पहुँचने से पहले

    वे किसी तरह रख ही लेते हैं

    अपनी थैलियों में आलू, बैंगन

    कैम्बीफ्लाम की कुछ गोलियाँ,

    एक कफ़ सिरप और एक पाव मटर की दाल

    घर पहुँचने के बाद

    वे पूरी तरह ज़िंदगी में लौट चुके होते हैं

    पत्नी से सिरदर्द का हाल पूछते हुए वे

    बेटी को उठा लेते हैं कंधे तक

    पानी पीते हैं, साँस लेते हैं

    और फिर सुलगा लेते हैं बीड़ी

    सोचते हैं

    ज़िंदगी में लौटने के लिए

    काम पर जाना कितना ज़रूरी है!

    स्रोत :
    • रचनाकार : यशवंत कुमार
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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