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काम

kaam

प्रभात

अन्य

अन्य

प्रभात

काम

प्रभात

और अधिकप्रभात

    नदी का काम कितना अलग है पेड़ के काम से

    पगडंडी का काम कितना अलग है खेत के काम से

    इनके साथ-साथ किसान और नाव खेने वाले भी

    कितना लीन रहते हैं अपने-अपने काम में

    झरने और तालाब अपनी-अपनी ज़िम्मेदारियों को

    पूरा करने में डूबे रहते हैं

    सूखी घासों के उजास से घोंसला बुनते हैं बया

    मनुष्यों के भरोसे तो धुएँ से जलता आसमान

    बारिश करती है महीनों धुलाई, रखती है नया

    ऐसा लगता है पहाड़ों के पास नहीं है कुछ भी काम

    पर वे जगह देते हैं अपने क़दीमी वृक्षों में लालटेनों की तरह

    टँगी बकरियों और तेंदुओं को

    ढलानों से आवाज़ लगाते हुए उतरते चरवाहों को

    घरों-आँगनों में चित्र उकेरने के लिए

    खड़िया माँगती आदिवासी युवतियों को

    कुछ अलग ही तरह के काम है खदानों और तेल के कुँओं के पास

    सुंदर-सुंदर कामों की कैसी सुंदर बुनावट है कायनात में

    चाँद के नीचे उड़ते पक्षियों को देखते सोचते रहता हूँ अक्सर रात में

    सोच में डूब जाता हूँ कभी-कभी तो नींद उचट जाती है

    चींटियों की सेनाओं से ज़्यादा उम्मीद है पृथ्वी को

    राष्ट्रपतियों की सेनाओं के बजाय

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रभात
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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