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जो अज्ञान में जनमे

jo agyan mein janme

अनुवाद : दिनकर सोनवलकर

बा. सी. मर्ढेकर

अन्य

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बा. सी. मर्ढेकर

जो अज्ञान में जनमे

बा. सी. मर्ढेकर

और अधिकबा. सी. मर्ढेकर

    जो अज्ञान में जनमे, और अज्ञान में ही मरे,

    उनको हे भगवान्, क्या कलेजे से लगाया तूने?

    क्यों हुए निष्ठुर इतने, कि उनको भी छोड़ दिया

    जन्म और मृत्यु के बाद भी, विश्वगर्भ में डाला।

    इस धरती पर जनमे और देह हुई सफल उनकी

    आए और कर्म किए और फिर चले गए।

    आँसुओं के बिना गलती है चरबी उसी में दिखती है अज्ञान की छवि,

    तेरे खेत में खाद और बीज वे बन गए।

    हम ज्ञानी थक गए, पश्चात्ताप से हुए नहीं दग्ध,

    और कभी पसीजे, देखकर दुख औरों का!

    बीने ज्ञान के कण हमने, रेत के कणों की तरह,

    और अब बने कोरे पत्थर, बुद्धि के रूप में।

    हमारी संवेदना हो गई थोथी, रूखी देह के परे

    ऊपर अहम् का पहाड़, शुरू हुआ।

    तपती है यह धरती, मगर आँसू या पसीने का नाम नहीं

    बाँझ उदर के लिए इनाम : रूखी काया।

    स्रोत :
    • पुस्तक : प्रतिनिधि संकलन कविता मराठी (पृष्ठ 144)
    • रचनाकार : बा. सी. मर्ढेकर
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन
    • संस्करण : 1965

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